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Bhadrapada Purnima: भाद्रपद पूर्णिमा व्रत आज, इस कथा के बिना अधूरी हैं भगवान सत्यनारायण की पूजा, पितृ पक्ष की होती हैं शुरुआत

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आज भाद्रपद पूर्णिमा व्रत हैं। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में भाद्रपद पूर्णिमा व्रत किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान सत्यनारायण और चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा इस तिथि को अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन और माता का कारक माना गया है। पूर्णिमा की तिथि में सत्यानारायण भगवान की कथा का विशेष पुण्य प्राप्त होता है। यह व्रत खास तौर से महिलाएं रखती है। इस व्रत को रखने से संतान बुद्धिमान होती है। साथ ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलती हैं। जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा समेत अन्य जरुरी जानकारी

 

भाद्रपद पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त

20 सितंबर को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि, प्रात: 05 बजकर 28 मिनट से आरंभ हो चुकी हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा तिथि का समापन 21 सितंबर 2021 को प्रात: 05 बजकर 24 मिनट पर होगा।

 

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि

पूर्णिमा के दिन ब्रहम मुहूर्त में उठकर स्नादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद विधि विधान से भगवान सत्यनारायण की पूजा करें और उन्हें नैवेद्य व फल-फूल अर्पित करें। पूजन के बाद भगवान सत्यनारायण की कथा सुनेंनी। इसके बाद पंचामृत और चूरमे का प्रसाद वितरित करें। इस दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को दान अवश्य करें।

 

भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की कथा

मत्स्य पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान भोलेनाथ के दर्शन करके लौट रहे थे। तभी रास्ते में उनकी भेंट भगवान श्री विष्णु से हो गई। ऋषि दुर्वासा ने शंकर जी द्वारा दी गई बिल्व पत्र की माला विष्णु जी को दे दी। भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी। इस बात से महर्षि दुर्वासा ने क्रोधित होकर विष्णु जी को श्राप दिया, कि लक्ष्मी जी उनसे दूर हो जाएंगी। उनका क्षीरसागर छिन जाएगा, शेषनाग भी सहायता नहीं कर सकेंगे। जब भगवान विष्णु जी ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम करके इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा। तब महर्षि दुर्वासा ने कहा कि उमा-महेश्वर व्रत करने की सलाह दी, और कहा कि तभी इस श्राप से उन्हें मुक्ति मिलेगी। तब भगवान श्री विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत उनकी सभी शक्तियां भगवान विष्णु को वापस मिल गईं।