कर्पूरी ठाकुर 'लाठी' बन कर राजनीति करने वाले रघुवंश प्रसाद ने लालू प्रसाद का दामन थामा तो जिंदगी भर उन्हीं का होकर रहने का मन बनाया था। लेकिन नियति को यह मंजूर हुआ। खाटी समाजवादी छवि के नेता रघुवंश प्रसाद ने पार्टी के भीतर अपनी उपेक्षा और अपमान को तो बर्दाश्त कर लिया लेकिन पार्टी से बाहर के लोगों के साथ मिलकर पार्टी जब नये नेतृत्व ने उनकी उपेक्षा और अपमान किया तो रघुवंश प्रसाद से सहन नहीं हुआ। ऐसा बताया जा रहा है कि रघुवंश प्रसाद को सीने के संक्रमण से पीड़ा कम और अपमान और उपेक्षा की पीड़ा ज्यादा है। इसलिए उन्होंने स्वस्थ होने का भी इंतजार नहीं किया और पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
आरजेडी से रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा मामूली घटना नहीं है। उनके इस्तीफे से बिहार में लालू की लालटेन बुझने के संकेत हैं। इसीलिए लालू यादव ने जेल से रघुवंश प्रसाद को चिट्ठी लिखी, रघुवंश प्रसाद की पीड़ा इतनी गहरी थी कि उन्होंने एम्स के बिस्तर पर लेटे-लेटे डेढ़ लाइन की चिट्ठी लिख कर लालू यादव के आग्रह को ठुकरा दिया। बिहार में कहा जाता है कि राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर संभाल रहे लालू के लाल तेज प्रताप और तेजस्वी यादव को न तो समाजवादी सिद्धांतों की जानकारी है और न जमीनी राजनीति की समझ है। इसीलिए लालू प्रसाद के जेल जाते ही पार्टी से जुड़े स्वाभिमानी नेता या तो नेपथ्य में चले गये या फिर पार्टी छोड़कर अन्य दलों में गये। ऐसे नेताओं में रामकृपाल यादव एक हैं। अब तक राजद की रीढ़ रहे रघुवंश प्रसाद ने भी इस्तीफा दे दिया। रघुवंश प्रसाद ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि 32 साल आपके पीछे खड़ा रहा लेकिन अब नहीं।
तेजस्वी अपने विधानसभा सीट राघोपुर से जीत पक्की करने के लिए वैशाली के बाहुबली नेता रामा सिंह को राजद में शामिल कराना चाहते थे। रामा सिंह मीडिया के सामने इसकी पुष्टि कर चुके थे। यह वही रामा सिंह हैं जिन्होंने 2014 में रघुवंश प्रसाद को हराया था। रामा सिंह आपराधिक छवि के नेता हैं। रघुवंश प्रसाद ने रामा सिंह को पार्टी में शामिल करने का विरोध किया था। अपना विरोध वो लालू यादव को रिम्स (जेल) तक पहुंचा चुके थे। इसके बावजूद रामासिंह को पार्टी में शामिल करने का ऐलान कर दिया गया। 2014 और 2019 में राज्यसभा की योग्यता-अहर्यता के बावजूद उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा गया। रघुवंश ने इस पर भी कभी आपत्ति नहीं जताई। लेकिन रामा सिंह को पार्टी में शामिल करने से नाराज होकर रघुवंश प्रसाद ने 23 जून को पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन लालू ने इसे मंजूर नहीं किया था। रघुवंश प्रसाद को मनाने के लिए लालू ने कई संदेश भेजे। जब वो नहीं माने तो लालू ने जेल से रघुवंश प्रसाद को एक चिट्ठी भेजी। उस चिट्ठी के जवाब में रघुवंश ने एम्स में बिस्तर पर लेटे-लेटे डेढ़ लाइन की एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी की लिखावट और शब्दों की संख्या में रघुवंश प्रसाद की पीड़ा साफ झलक रही है।
रघुवंश प्रसाद पांच बार सांसद रहे हैं। खाटी समाजवादी नेता हैं। उनके पार्टी छोड़ देने को राजद के किले की मुख्य भीत ढह जाने जैसा समझा जा रहा है। भले ही वो पिछला संसदीय चुनाव हार गये लेकिन बिहार में उनकी व्यक्तिगत छवि जस की तस रही। रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे से राजद के बचे-खुचे पुराने नेता भी नेपथ्य में जाने का मन बना चुके हैं। बिहार की राजनीति से बावस्ता नेताओं का मानना है कि बिहार में लालटेन की लाइट बुझ रही है।
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