प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया तो उनके इस फैसले के बाद विपक्ष सहन नहीं कर पा रहा है। विपक्षियों को विश्वास नहीं हो पा रहा कि, आखिर उन्होंने ये फैसला कैसे ले लिया, अब विरोधी दलों का कहना है कि उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ये कदम उठाया है। तीनों कानूनों को वापस लेने के बाद जहां एक और किसानों में खुशी का माहौल है तो वहीं, राकेश टिकैत के सीने पर सांप लेट गया है कि अब वो किसपर अपनी राजनीति चमकाएंगे। अब जब किसानों का मुद्दा खत्म हो गया है तो लगता है राकेश टिकैत राजनीति में एंट्री करने की सोच रहे हैं।
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तीनों कृषि कानूनों के रद्द होते ही असदुद्दीन ओवैसी सीएए और एनआरसी को निरस्त करने की मांग करने लगे। जिसपर राकेश टिकैत ने कहा है कि, ओवैसी और बीजेपी के बीच 'चाचा भतीजा' का रिश्ता है। उन्हें इस बारे में टीवी पर बात नहीं करनी चाहिए। वह बीजेपी से इस संबंध में सीधे ही पूछ सकते हैं।
असदुद्दीन ओवैसी ने चेतावनी दी कि अगर सीएए और एनआरसी को खत्म नहीं किया गया तो प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरेंगे और इसे शाहीन बाग में बदल देंगे। अपने एक बयान में ओवैसी ने सीएए संविधान के खिलाफ है, अगर बीजेपी सरकार इस कानून को वापस नहीं लेती है, तो हम सड़कों पर उतरेंगे और यहां एक और शाहीन बाग बन जाएगा।
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अभी तक किसान नेता तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग में प्रदर्शन कर रहे थे। विपक्षी दल अगले इलेक्शन के लिए इसी का मुद्दा बना रहे थे। जब प्रधानमंत्री ने इसे वापस ले लिया तो अब किसान नेताओं अलग ही राजनीति करने पर उतर आए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का कहना है कि, जब तक सरकार उनकी छह मांगों पर वार्ता बहाल नहीं करती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। मोर्चा ने छह मांगें रखीं, जिनमें उत्पादन की व्यापक लागत के आधार पर एमएसपी को सभी कृषि उपज के लिए किसानों का कानूनी अधिकार बनाने, लखीमपुर खीरी घटना के संबंध में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त करने और उनकी गिरफ्तारी के अलावा किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों के लिए स्मारक का निर्माण शामिल है।