चीन कितना भी चाहले लेकिन सच कभी छुपा नहीं सकता। एक न एक दिन उसको सच कबूलना ही पड़ेगा।…और उसको सच कबूलना ही पड़ा। दरअसल, गलवान की घटना के बाद भारतीय एजेंसियों ने रोते-विलखते चीनी सैनिकों की पिक्चरें हासिल कर लीं जिन्हें न केवल दिखाया गया बल्कि बताया भी गया कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार अपनी फौज और फौजी शहीदों का सम्मान नहीं करती। इस बात का इतना दबाव बना चीन पर कि उसे अपने मुख पृष्ठ के संपादक से कहलवाना पड़ा कि गलवान में भारतीयों के हाथ चीनी सैनिक मारे गये थे।
कहते हैं न कि चोर, चोरी से जाए हेरा-फेरी से न जाए। ये ग्लोबल टाइम्स के सम्पादक अपने सैनिकों के मारे जाने की बात कबूलते वक्त भी झूठ बोलना नहीं भूले। हू शी जिन बोले कि हमारे सैनिक मारे तो गये थे लेकिन भारत की तुलना में बहुत कम और हमारा तो कोई सैनिक पकड़ा ही नहीं गया था। हमने भारतीय सैनिक पकड़ रखे। हू शीजिन की याद्दाश्त शायद कमजोर है, वो यह भूल गये कि अपने घायलों और मृत शरीरों के शरीर उठाने और शवों को ढोने के लिए बाकयादा भारत सरकार से अनुमित मांगी थी। चीन के चार हेलीकॉप्टर आये थे उस शाम डेड बॉडी और घायलों को उठाने के लिए।
चीनी सैनिकों के शवों की सही संख्या या तो उस सिमेटरी से पता चल सकती है जहां उन्हें दफनाया गया या फिर चीन सरकार की वो सूची जिसमें उन्हें मृत घोषित किया गया। तीसरा एक सोर्स और भी है जो भारत समेत बाकी दुनिया के विश्वसनीय हो सकता है वो है इंडियन आर्मी। क्यों कि इंडियन आर्मी ने चीन के हेलिकॉप्टरों से ढोए जा रहे शवों को अपनी आंखों से देखा है। बहरहाल, जो भी है चीन ने सच्चाई को स्वीकार तो है भले ही आधा ही स्वीकार किया है।
चीन की सरकार भले अबतक गलवान में मारे गए अपने सैनिकों के बारे में न बताए लेकिन उसकी मीडिया की तरफ से ही उसकी पोल खुल चुकी है। चीन सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के एडिटर ने खुद माना है कि हां गलवान में चीन को भी नुकसान हुआ था।
गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे। खबरों में आया था कि चीन के कम से कम 40 से ज्यादा जवान या तो मारे गए हैं या फिर गंभीर रूप से जख्मी हुए हैं। जब राजनाथ सिंह ने संसद में लद्दाख मसले पर बयान दिया तो उन्होंने दोहराया कि चीन को हिंसक झड़प में भारी नुकसान हुआ था।.