अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सालों से पुरानी डूरंड लाइन को लेकर विवाद चल रहा है। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तालिबान शासन के दौरान यह मुद्दा सुलझा लिया जाएगा लेकिन तालिबान ने बाड़बंदी और सैन्य चौकी निर्माण को रोक दिया। इसी बीच तालिबान ने एक बड़ा कदम उठाते हुए एक संयुक्त मंत्रिस्तरीय समिति का गठन किया। बताया गया है कि संयुक्त समिति का उद्देश्य डूरंड रेखा की समस्याओं को हल करना और भविष्य में संभावित रूप से होने वाली सुरक्षा समस्याओं का समाधान करना है। इनसे जुड़े सभी मुद्दों को आपसी समझ के माध्यम से हल किया जाना चाहिए।
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रिपोर्ट के मुताबिक यह कदम पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) मोईद यूसुफ की काबुल यात्रा के बाद आया है। एनएसए यूसुफ के नेतृत्व में पाकिस्तान का एक प्रतिनिधिमंडल दो दिवसीय यात्रा में इस्लामिक अमीरात के कई अधिकारियों के साथ इस्लामाबाद लौट आया है। वही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि यात्रा का उद्देश्य आर्थिक जुड़ाव को गहरा करने के पाकिस्तान के प्रस्तावों पर चर्चा करना था। इस यात्रा के दौरान पाकिस्तान ने स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग, सीमा शुल्क, रेलवे और विमानन सहित कई क्षेत्रों में अफगानिस्तान क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण सहायता की पेशकश की।
इस मसले पर दोनों देशों के राजनीतिक विशेषज्ञों की राय अलग है। अफगानिस्तान में एक राजनीतिक विश्लेषक ने बताया कि एक ऐसी समिति स्थापित करनी चाहिए थी जो बाड़ हटाने पर काम करती। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे संयुक्त समिति के गठन के माध्यम से हल नहीं किया जाएगा। यह मुद्दा डूरंड रेखा के दोनों किनारों पर अफगानों के फैसले से संबंधित है। गौरतलब है कि डूरंड रेखा, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की सीमा का नाम है। इसे 1890 के दशक में एक ब्रिटिश कर्नल के नाम पर रखा गया है। अफगानिस्तान ने हमेशा इसे औपचारिक रूप से स्वीकार करने से इनकार किया है।