रुस और यूक्रेन जंग के बीच खुद को सुपरपावर मानने वाला अमेरिका चाहकर भी इस युद्ध को नहीं रोक पा रहा है और अपनी इस चिढ़ को वो भारत पर उतारने लगा है। यही वजह है, उन्होंने चीन की आड़ में भारत को हड़काने का एजेंडा शुरू कर दिया। अमेरिका ने यहां तक दिया कि अगर भारत एलओसी का उल्लंघन करेगा तो उसे बचाने के लिए रूस भी नहीं आएगा। लगता है भारत को धमकी दे रहा अमेरिका ये बात भूल गया, जब अटल राज में भारत नहीं झुका तो मोदी राज भारत भला फिर कैसे डर सकता है।
दुनिया के कमजोर देशों पर दादागिरी दिखाने की अमेरिका की पुरानी आदत रही है। जब वो रूस-चीन जैसे बड़े देशों के खिलाफ कुछ नहीं कर पाता तो वो छोटे देशों पर धमकी देने पर उतारू हो जाता है। ये काम अमेरिका 1998 से करता आ रहा है। जब भारत में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उस वक्त वाजपेयी की सरकार परमाणु परीक्षण करने पर अड़ी हुई थी। अटल के इस फैसले से अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश चिढ़े हुए थे। परमाणु परीक्षण के चलते भारत को दुनिया में अलग-थलग किया जा रहा था। यहां तक कि अमेरिका की तत्कालीन बिल किलंटन की सरकार ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। बावजूद इसके बिना डरे अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण की मंजूरी दे दी थी और फिर 11 माई 1998 को ऐसा परमाणु धमाका हुआ कि पूरी दुनिया का आंखें फटी की फटी रह गई।
ये धमाका अमेरिका के लिए वो करारा जवाब था, जो भारत को धमकी देकर परमाणु परीक्षण को रोकना चाहता था। पर अटल ने अमेरिका के आगे घुटने टेकने की जगह दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराया। इतिहास के पन्नों से अमेरिका को समझ लेना चाहिए कि उस वक्त भारत नहीं झुका तो भला मोदी राज में हिंदुस्तान कैसे झुक सकता है। अमेरिका ने जब भारत पर रूस से तेल और गैस न खरीदने का दवाब बनाया तो भारत भी मुंहतोड़ जवाब देने से पीछे नहीं हटा। विदेश मंत्री एस जयंकर ने जवाब देते हुए वैश्विक मंच पर बताया कि खुद यूरोप रूस से तेल और गैस खरीदने वालों में से सबसे बड़ा खरीददार है। जयशंकर के जवाब से ब्रिटेन की विदेश सचिव ने भी सहमती जताई और कहा कि भारत एक संप्रभु देश और मैं भारत को नहीं बताऊंगी कि उसे क्या करना है।