'आपने रामयण और महाभारत काल के उन आयुद्धों की कहानी तो सुनी होगी, जो रावण और कौरवों की सेना का संहार कर वापस भगवान राम और श्रीकृष्ण के महारथियों के पास वापस आ जाते थे। ब्रह्मास्त्र, पाशुपत्यास्त्र, नारायणास्त्र, परजन्यास्त्र और अमोघास्त्र जैसे न जाने कितने अस्त्र थे जो शत्रु सेना संहार कर वापस आ जाते थे। कुछ अस्त्र केवल एक बार तो कुछ कई-कई बार इस्तेमाल किए जा सकते थे। भारत एक ही अस्त्र यानी मिसाइल को कई बार इस्तेमाल करने की टेक्नोलॉजी हासिल कर चुका है। इसका एक सफल परीक्षण चुपचाप 23 मई 2016 को किया जा चुका है। दूसरा परीक्षण इसी महीने किया जाना था। प्राकृतिक व्यवधानों के कारण उसे रोक दिया गया। भारत रियूजेबुल स्पेस व्हीकल और रियूजेबुल मिसाइल वाला दुनिया का पहला देश होगा।'
आपने अभी तक स्पेस एक्स का नाम सुना है। स्पेस एक्स मतलब ऐसा अंतरिक्ष यान जो अंतरिक्ष में जाकर अपना मिशन पूरा करे और फिर वापस धरती आ जाए। उसी अंतरिक्ष यान को दोबारा से इस्तेमाल किया जा सके। स्पेस एक्स एलन मस्क की कंपनी है। एलन मस्क दुनिया के सबसे अमीर आदमी है। उनके पास पैसा और संसाधनों की कमी नहीं है। स्पेस एक्स अब तक कई एक्सपेरिमेंट कर चुका है, लेकिन कामयाबी अभी तक नहीं मिली है। हां, ये संभावनाएँ जरूर पैदा हुई हैं कि रियूजेबुल स्पेश व्हीकल बनाए जाने के करीब पहुंच चुके हैं।
स्पेस एक्स का प्रोग्राम नासा के साथ चल रहा है। इसलिए पब्लिसिटी भी मिल रही है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत ने यानी इसरो ने स्पेस एक्स जैसा एक एक्सपेरिमेंट 2016 में ही कर लिया है। स्पेस एक्स को तो पूरी तरह सफलता कभी नहीं मिली, लेकिन इसरो का रियूजेबुल स्पेस व्हीकल एक्सपेरिमेंट सौ फीसदी सफल रहा। लेकिन भारत ने कोई शोर-शराबा नहीं किया। यहां तक कि भारत में भी चंद लोग जानते हैं कि इसरो रियूजेबुल स्पेस व्हीकल मिशन पर काफी आगे बढ़ चुका है। यह संभव है कि भारत यानी इसरो, स्पेस एक्स के रियूजेबुल स्पेस व्हीकल से पहले अपना व्हीकल लॉंच कर दे। चीन भी रियूजेबुल स्पेस व्हीकल बनाने की दौड़ लगा है। लेकिन उसकी प्रगति कहां तक पहुंची है इसका कोई सटीक अनुमान नहीं है। अगर चीन ने कुछ प्रगति हासिल कर ली होती तो अमेरिका को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ता।
बहरहाल, भारत न तो शोर मचाता है न ही किसी को नीचा दिखाने की मंशा रखता है। इसलिए चुपचाप अपने मिशन जुटा हुआ है। भारत का रियूजेबुल स्पेश व्हीकल स्पेस एक्स से कहीं आगे और उन्नत टेक्नोलॉजी का है। भारत ने 23 मई 2016 को जो सफल परीक्षण किया था उसमें रियूजेबुल स्पेस व्हीकल के साथ उसमें लगाए गए सभी महंगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी सही सलामत वापस धरती पर पहुंच गए थे। स्पेस एक्स में ऐसा नहीं है। स्पेस एक्स केवल नीचे का हिस्सा ही सही सलामत वापस लाने का प्रयास कर रहा है। जबकि भारत का प्रयास पूरे स्पेस व्हीकल को सभी इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के साथ वापस लाना है। यहां भारत को सफलता की संभावना इसलिए ज्यादा हैं क्यों कि सिलिका और कॉर्बन के मिश्रण से बनी टाइल्स 4000 सेंटिग्रेट तक के तापमान को झेलने में सक्षम होती हैं। इन टाइल्स को बनाने की दक्षता केवल इसरो के पास ही है।
खास बात यह कि अंतरिक्ष से धरती की ओर वापसी के समय जो घर्षण होता है उससे भी लगभग 4000 सेंटिग्रेट की ऊर्जा पैदा होती है। यही वजह है कि स्पेस व्हीकल के अगले हिस्से में लगे उपकरण जलकर राख हो जाते हैं। स्पेस एक्स अभी तक इस मामले में इसरो से काफी पीछे है। इसरो स्पेस व्हीकल के अगले हिस्से में रखे गए इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों को सकुशल धरती पर लाने का सफल परीक्षण कर चुका है।
सवाल यह उठता है कि इसरो अपनी सफलता का डंका इस समय क्यों पीट रहा है। दरअसल, इसरो रियूजेबुल स्पेस व्हीकल का दूसरा एक्सपेरिमेंट अप्रैल में करने वाला था। जिसे चक्रवाती तूफानों के कारण एक्सपेरिमेंट रोक दिया गया। लेकिन जल्द ही परीक्षण किया जाएगा। भारत के रियूजेबुल स्पेस व्हीकल और स्पेस एक्स में दूसरा बड़ा फर्क यह है कि वो बहुत महंगी टेक्नोलॉजी पर आधारित है। उसके अगले हिस्से में लगाए गए इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों के सही सलामत वापसी की कोई गारंटी नहीं है। जबकि इसरो के उपकरण में केवल अंतरिक्ष यान ही नहीं बल्कि उसमें लगाए गए सारे उपकरण सही सलामत लौट कर आएँगे। भारत का मिशन बहुत सस्ता है। भारत रियूजेबुल अंतरिक्ष व्हीकल का कॉमर्शिलय उपयोग 2030 या उससे पहले शुरू कर सकता है। जबकि स्पेस एक्स अभी तक अपने रियूजेबुल स्पेस व्हीकल के कॉमर्शियल उपयोग की तारीख अभी तक घोषित नहीं कर पाया है।
भारत के इस मिशन की सफलता से चीन के चिढ़ रहा है। उसके चिढ़ने की वजह भी हैं। क्यों कि भारत की इस सफलता से केवल स्पेस व्हीकल के दुबारा उपयोग नहीं होगा बल्कि भारत ऐसी मिसाइल भी बना सकता है। जो दुश्मन को बर्बाद कर वापस अपने बेस पर लौट सकती है। उसमें वॉर हेड लगाकर कई बार इस्तेमाल किया जासकेगा। भारत ऐसी सफलता हासिल करने वाला दुनिया का इकलौता देश बनने की ओर अग्रसर है।