बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के खिलाड़ी जमकर अपना प्रदर्शन दिखा रहे हैं। इस इवेंट में देश के करीब 200 से अधिक एथलीट हिस्सा ले रहे हैं। यहां तक पहुंचे एथलीटों की राह हमे देखने में भले ही असान लग रहा हो लेकिन, असल में ये सफर इतना सरल है नहीं। इन खिलाड़ियों ने अंगारों पर चलकर यहां तक के सफर को तय किया है। किसी ने आधी रोटी खाकर कड़ी मेहनत की है तो, किसी ने अपने पिता को खोने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। कई ऐसे हैं जिन्होंने ठाना कुछ और कर कुछ और गए। कई खिलाड़ी देश के बेहद ही गरीब तबके के परिवार से आते हैं। जिन्हें दो दून की रोटी भी नसीब नहीं होती। लेकिन, लगन ऐसी कि भूख भी शर्मा जाए। कुछ ऐसी ही कहानी है इतिहास रचने वाले गुरुराजा पुजारी की।
कॉमनवेल्थ गेम्स में जीते ब्रॉन्ज मेडल
छोटे कद काठी के वेटलिफ्टर गुरुराजा पुजारी ने कॉमनवेल्थ गेम्स के दूसरे दिन भारत की झोली में ब्रॉन्ज मेडल डाला था। उन्होंने क्लीन एंड जर्क के अपने तीसरे प्रयास में 151 किलो का भार उठाकर मेडल जीता। यह वजन उनके अपने निजी 148 भार उठाने के रिकॉर्ड से तीन किलो अधिक था। इससे पहले गुरुराजा 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं। पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने 56 किलाग्राम भार वर्ग में 249 किलोग्राम भार उठाया था।
सुशील कुमार को देख कूदा अखाड़े में लेकिन मेडल वेटलिफ्टिंग में
गुरुराजा पुजारी की कहानी जरा फिल्मी है। वो कर्नाटक के कुंडारपुर के एक बेहद ही गरीब परिवरा से आते हैं। उनके पिता ट्रक ड्राइवर हैं। खेलों में दिलचस्पी की कहानी 2018 ओलंपिक से शुरू होती है। इस दौरान सुशील कुमार के गले में जब गुरुराजा ने मेडल देखा तो उन्होंने अपने आप को रोक नहीं पाया और यहीं से कुश्ती में करियर बनाने की ठान लिया। और फिर क्या था लंगोट कसकर कूद गए अखाड़े में। कुछ दिनों तक वो अखाड़े में दाव पे दाव लगाते रहे लेकिन, उनके एक स्कूल टीचर ने उन्हें सलाह दी कि वो कुश्ती की जगह वेटलिफ्टिंग में अपना हाथ आजमाए। अब कुश्ती को छोड़ उन्होंने वेटलिफ्टिंग में अपनी लगन को झौंक लिया। लेकिन, हर गरीब परिवार की एक ही कहानी होती है कि उसके पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए पैसे नहीं होते हैं। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ उनके पिता महाबाला पुजारी के पास इतना पैसा था नहीं कि अपने लाल को अच्छी डाइट दे सकें। यहां तक कि बाहर के लोग ताना मारते थे कि अपने बेटे के लिए वो कब तक ऐसा करते रहेंगे। खैर जब सपनों की बात आती है तो भूख ही नहीं बल्कि दुनिया की कोई भी ताकत उसके पंख को नहीं रोक सकती है।
आर्मी में नहीं हो पाए भर्ती तो वायुसेना में आजमाई किश्मत
वेटलिफ्टिंग में कूदने के बाद गुरुराजा धीरे-धीरे चर्चा में आने लगे। उनका नाम खूब लिया जाने लगा, अब इस दौरान इमान जीत कर वो जो भी पैसे पाते उसे अपनी डाइट पर खर्च करने लगे। हालांकि, उन्हें नौकरी की भी सख्त जरूरत थी तो ऐसे में उन्होंने सेना में भर्ती होने के लिए अपनी किश्मत आजमाई लेकिन, कद छोटा होने के कारण उन्हें निराश होना पड़ा। वो हताश तो हुए लेकिन, तभी उन्हें पता चला कि भारतीय वायुसेना में कद को लेकर रियायत दी जाती है। इसके बाद वो यहां पर किश्मत आएमाएं और वायुसेना में शामिल हो गए। इसके बाद से वो लगातार देश का नाम रौशन करते आ रहे हैं।
भारत की धरती के ऐसे खिलाड़ी किसी सोना से कम नहीं है। ये माटी के लाल कहीं मिट्टी में दबे रहते हैं, धूप,बारिष और डंठ में मेहनत करना नहीं छोड़ते और जैसे ही मौका मिलता है ये बीज ऊपर आ जाता है और देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में छा जाता है। ऐसे देश के माटी के लालों को पूरे भारत की ओर से सलाम है। इसी तरह की रोचक काहनियों को जानने के लिए हमसे जुड़े रहें। बहुत जल्द ही किसी अगले कहानी के साथ पेश होंगे।