किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए पैर जमाना काफी मुश्किल होता है। जबकि धार्मिक कट्टरपंथी पार्टी के लिए राजनीतिक जामा पहनना आसान काम है, खासकर पाकिस्तान में जहां सिर्फ अल्लाह और आर्मी का वर्चस्व कायम है। पिछले सप्ताह तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) के चीफ खादिम हुसैन रिजवी की अचानक मृत्यु हो गई। लाहौर के मीनार-ए-पाकिस्तान में लाखों की भीड़ उसके जनाजे में उमड़ पड़ी। पाकिस्तान में हाल-फिलहाल के वर्षों में किसी के जनाजे में इतनी भीड़ शायद कभी नहीं देखी गई। जहां उसके बेटे साद हुसैन रिजवी को नय़ा चीफ मुकर्रर किया गया।
पाकिस्तानी जानकारों के मुताबिक शायद इसीलिए खादिम रिजवी को "भीड़ का नेता" कहा जाता था। पिछले दिनों इसी खादिम ने इस्लामाबाद में फ्रांसीसी राष्ट्रपति और फ्रांस के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन किया था। खादिम की मांग थी कि पाकिस्तान से फ्रांस के राजदूत को निष्कासित किया जाए। फ्रांस से किसी तरह का व्यापारिक संबध फौरन खत्म हो। इस्लामाबाद को कई दिनों तक इन लोगों ने बंधक बनाए रखा। हारकर प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने गृहमंत्री के साथ साथ 6 मंत्रियों को रिजवी के पास भेजा और उसके सामने झुकते हुए सभी मांगों को चुपचाप मान लिया ।
पाकिस्तानी सिविल सोसायटी के युसूफ नजर के मुताबिक, "इस भीड़ ने यह साबित कर दिया है कि किस तरह सरकारें, पाकिस्तानी आर्मी यहां एक पढ़ी लिखी प्रोग्रेसिव सोसायटी बनाने में नाकाम रहे हैं। क्योंकि वे रिलिजन के सहारे,अनपढ़ भीड़ को उल्लू बनाकर सत्ता पर कायम रहते आए हैं। सिर्फ सत्ता और पॉवर का खेल है यह।"
<h2>खादिम हुसैन रिजवी का उदय</h2>
कौन था यह खादिम हुसैन रिजवी, जिसने पाकिस्तानी सरकार और आर्मी को भी झुकने पर मजबूर कर दिया? तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा की तरह वो देवबंदी नहीं बल्कि बरेलवी विचारधारा को मानता था। पाकिस्तान की आवाम, खासकर गांवों में रहने वाले लोग बरेलवी फिरके से ही खुद को जोड़कर देखते हैं। ये कट्टरपंथी तो हैं लेकिन दूसरे आतंकी संगठनों की तरह खुद मारकाट नहीं करते। लेकिन ईशनिंदा (blasphemy) पर उनका रुख काफी कड़ा है। खादिम हुसैन रिजवी का नाम पहली बार 2011 में सुना गया, जब पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या उनके अंगरक्षक मुमताज कादरी ने गोली मार कर की।
खादिम ने सलमान की हत्या को जायज बताते हुए कादिर को बचाने के लिए आंदोलन छेड़ दिया। यहीं से खादिम हुसैन रिजवी की प्रसिद्धि की शुरुआत हुई। बरेलवी विचारधारा को मानने वाले ख़ादिम हुसैन रिज़वी को मुमताज़ क़ादरी के हक़ में खुलकर बोलने की वजह से पंजाब के बंदोबस्ती विभाग से निकाल दिया गया गया था, जहां वो क्लर्क था। कट्टरपंथी धार्मिक नेता खादिम ने अपनी पार्टी तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान बना ली। जब 2016 में कादरी को फांसी दी गय़ी, तब खादिम ने 40 दिन तक प्रदर्शन किया। जिसमें सरकार से मांग की गई कि कादरी को शहीद का दर्जा दिया जाए। अहमदिया और दूसरे हिन्दू और ईसाई समुदाय के लोगों को सरकारी नौकरियों से हटाया जाए। पूरे पाकिस्तान में शरिया कानून लागू हो और ईशनिंदा करने वालों को फौरन मौत की सजा दी जाए।
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खादिम की रैलियों में हजारों की भीड़ जुट रही थी। पाकिस्तानी आर्मी ने खादिम के साथ डील कर ली और उसकी पार्टी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के खिलाफ धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। कहते हैं कि पाकिस्तानी आर्मी ने खादिम की पार्टी की फंडिंग की। 2018 के चुनाव में खादिम की पार्टी टीएलपी को दो सीटें मिली। इमरान खान की सरकार को इस पार्टी का समर्थन है। 2018 में ईसाई महिला आसिया बीबी को सुप्रीम कोर्ट ने ईशनिंदा के आरोपों से बरी किया। तब खादिम और उसकी भीड़ ने इस्लामाबाद में काफी तमाशा किया। इमरान खान की सरकार ने खादिम को लिखित आश्वासन दिया कि आसिया को पाकिस्तान में नहीं रहने दिया जाएगा। और यही हुआ भी।
<h2>खादिम की गालियों पर भीड़ तालियां बजाती</h2>
खादिम और उसकी भीड़ की एक और जीत ने खादिम का कद काफी बढ़ा दिया था। पाकिस्तानी लेखक और पत्रकार मोहम्मद हनीफ के मुताबिक,"मुझे उसके भाषण से ज्यादा उसकी भाषा में दिलचस्पी थी। उन पंजाबियों की तरह जो अपने रिश्तेदारों को भी बिना मोटी-मोटी पंजाबी गालियां दिए बगैर बात नहीं कर सकते। और खादिम की गालियों पर तो भीड़ तालियां बजाती थीं।"
इस साल फरवरी में खादिम और उसकी पार्टी टीएलपी, पाकिस्तानी फिल्म "जिंदगी तमाशा" के खिलाफ ईशनिंदा का आरोप लगाते हुए उस पर बैन लगाने के लिए सड़क पर उतर आए थे। फिल्म की कहानी मोहम्मद राहत ख्वाजा नाम के एक बुजुर्ग किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बहुत धार्मिक और रुढ़िवादी ख्यालों वाला एक मुसलमान है। लेकिन उसकी जिंदगी तब मुश्किलों में घिर जाती है, जब उसका एक वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाता है। इस वीडियो में वह एक शादी में एक महिला का डांस देख रहा है। उसकी इस हरकत पर उसका परिवार शर्मिंदा होता है। राहत ख्वाजा जहां भी जाता है, उसे ताने और खरी-खोटी बातें सुनने को मिलती हैं। फिल्म कभी रिलीज नहीं हुई।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अल्लामा खादिम रिज़वी ने देश के बहुसंख्यक सुन्नी बरेलवी स्कूल की सड़क छाप भीड़ का वोट बैंक तो बना ही दिया था। पिछले सप्ताह खादिम ने अपनी रैली में कहा था,"मैं तो पैगबंर का चौकीदार हूं… अगर मेरे पास परमाणु बम होता तो फ्रांस को पैग़ंबर का कार्टून बनाने के जुर्म में बर्बाद कर देता।"
पाकिस्तान के जानकारों के मुताबिक खादिम के बेटे में वो बात नहीं है, जो उसके पिता में थी। वो भीड़ से उनकी भाषा में बात करता था। लेकिन पाकिस्तान में सत्ता और धार्मिक कट्टरपंथियों का पुराना तालमेल रहा है और कोई और खादिम आ जाएगा भीड़ जुटाने।.