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गुरु नानक जयंती 2020: सिखों के बगैर उत्तर भारत से मिट गया होता हिंदू धर्म

गुरु नानक जयंती 2020: सिखों के बगैर उत्तर भारत से मिट गया होता हिंदू धर्म

भारत में हिंदू धर्म पर जब-जब कोई संकट आया या हिंदू धर्म की मान्यताओं ने रुढ़िवादी रूप अख्तियार कर लिया, तब-तब इस सनातन जीवन प्रवाह में से कुछ ऐसे धर्म सुधार आंदोलन शुरू हुए जिन्होंने हिंदू धर्म को एक नया जीवन दर्शन दिया है। प्राचीन काल में जैन और बौद्ध धर्म इसी हिंदू परंपरा से निकले ऐसे धर्म थे, जिन्होंने रुढ़िवादी बेड़ियों में जकड़े हिंदू धर्म में नई जीवन ऊर्जा का संचार किया।

मध्यकाल में अनेक भक्त संतों ने हिंदू धर्म में रुढ़िवादी परंपराओं का विरोध किया और लोगों से अपनी आस्था के अनुसार आचरण करने का आग्रह किया। इन भक्त संतों में से एक गुरु नानक की शिक्षाओं ने धीरे-धीरे एक अलग सिख धर्म का रूप ले लिया। इस सिख धर्म ने जातिवाद के भेद को मिटा कर सभी व्यक्तियों को एक माना। धीरे-धीरे सिख धर्म एक ऐसी ताकत के रूप में उभरा, जिसने मुगल साम्राज्य के अन्यायपूर्ण इस्लामिक शासन की रीढ़ तोड़ दी।

गुरु नानक का जन्म 1469 ईस्वी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाहौर से करीब 36 मील दूर दक्षिण-पश्चिम स्थित ननकाना साहिब में हुआ था। इसलिए इस दिन सिख गुरु परब के रूप में मनाते हैं। गुरु नानक अपने उपदेश छोटी-छोटी कविताओं में देते थे। जिनको आदि ग्रंथ में संकलित किया गया है। इसमें जपजी एक मुख्य कविता है। गुरु नानक की सबसे प्रमुख शिक्षाओं में यह था कि लोगों को पूजा, तीर्थयात्रा जैसे धार्मिक कर्तव्य तो करने ही चाहिए, लेकिन अपनी आजीविका परिश्रम और इमानदारी से कमाना चाहिए।
<h2>लोकतांत्रिक और समाजवादी समाज की पूर्व परंपरा</h2>
गुरु नानक ने कई अंधविश्वासों का विरोध भी किया और व्यक्ति की समानता पर बल दिया। गुरु नानक ने जाति व्यवस्था का विरोध किया उन्होंने कई तत्कालीन मान्यताओं में सुधार करने की कोशिश भी की। नानक के विचार वेद, उपनिषद, भागवत-गीता और रामायण जैसे हिंदू धर्म ग्रंथों से लिए गए हैं। इनमें निष्काम कर्म का सिद्धांत सबसे प्रमुख है। उन्होंने अवतारवाद, नर्क-स्वर्ग के विचार जैसे अंधविश्वासों का विरोध किया। नानक ने अपने जीवन काल में तो कोई पृथक धार्मिक पंथ नहीं चलाया। लेकिन उनके विचार धीरे-धीरे सिख धर्म के आधार पर गए।

गुरु नानक ने जिस तरह के समाज की नींव रखी, उसे लोकतांत्रिक और समाजवादी समाज की एक तरह से पूर्व परंपरा कहा जा सकता है। लोकतांत्रिक और समाजवादी समाज की ज्यादातर मान्यताएं गुरु नानक की शिक्षाओं में शामिल हैं। गुरु नानक ने जातिवाद की निंदा की और सामाजिक दायित्व जैसी भावना को बल दिया। पंजाब में उन्होंने लोकमंगल की भावना को आधार बनाकर इस्लाम के सामने हिंदुओं का मनोबल ऊंचा रखने में मदद की।
<h2>हिंदुओं के मनोबल को ऊंचा उठाया</h2>
सिखों का मुगलों से जो टकराव शुरू हुआ वह एक समुदाय विशेष का विद्रोह बन गया। सिख पंथ ने दृढ़ता और वीरता के साथ मुगलों का सामना किया। अपने साथ पहाड़ी हिंदू राजाओं को मिला कर उन्होंने पूरे उत्तर भारत से इस्लामिक वर्चस्व को कड़ी चुनौती दी। गुरु नानक की शिक्षाओं को अपनाकर सिखों ने 17वीं सदी तक खुद को एक सैनिक शक्ति में ढाल दिया। सिखों के भीतर अन्याय के खिलाफ सिर नहीं झुकाने की भावना का जो बीज गुरु नानक ने बोया, आगे चलकर वह एक ऐसा विशाल वटवृक्ष बना जिसने अन्यायपूर्ण इस्लामिक शासन को उत्तर भारत से खत्म करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई।

गुरु नानक की शिक्षाओं ने केवल पंजाब को नहीं बल्कि पूरे भारत को एक नई दिशा दी। उन्होंने एक नई समाज व्यवस्था स्थापित की। इसके लिए उन्होंने पुरानी समाज व्यवस्था की बहुत कठोर आलोचना और निंदा नहीं की। बल्कि उसी के समानांतर अपने लिए एक नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित की। जिसने मध्यकाल में इस्लामिक शासन और धार्मिक उत्पीड़न के समक्ष बहुमत के उत्तर भारतीय हिंदुओं के मनोबल को ऊंचा उठाने में मदद की।.