सातवें दौर की आंदोलनकारी और सरकार की वार्ता और जल्द ही हल निकलने की उम्मीद के बीच अचानक वार्ता में खलल डाले जाने और आंदोलन को आगे खींचने के संकेत मिलने लगे हैं। पहले हरियाणा और राजस्थान बॉर्डर पर उत्पात की खबरें मिलीं। हरियाणा बॉर्डर पर बैरिकेड तोड़े गए। गाजीपुर बॉर्डर पर भी कुछ गड़बड़ी हुई लेकिन उस पर भी काबू कर लिया गया। शाम होते-होते आंदोलनकारियों की प्रेस कांफ्रेंस से खबर आई कि अगर सरकार तीनों कृषि आंदोलन वापस नहीं लेती तो आंदोलन जारी रहेगा। सरकार की एजेंसियां उन तत्वों पर भी नजर रखरही हैं जो सराकर और आंदोलनकारियों के बीच फिर से खाई पैदा करने की कोशिश कर रही है। क्यों कि जब वार्ता 4 तारीख को होनी है तो उससे पहले शक और शुबह को लेकर चिंता और चेतावनी की आवाजें क्यों उठने लगीं।
आंदोलनकारी नेताओं ने अल्टीमेटम देते हुए कहा कि अगर 4 जनवरी को सरकार के साथ हमारी मांगों पर सहमत नहीं बनी तो 23 जनवरी को किसान बड़ा घेराव करेंगे। इसके साथ ही 26 जनवरी को बड़ी ट्रैक्टर परेड की जाएगी। हालांकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आश्वासन दिया है कि अगली बैठक में खेती और किसानों के हित में फैसला हो जाएगा। कि 4 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली वार्ता की रणनीति तय करने के लिए आज किसानों ने ये बैठक की थी। सिंघु बॉर्डर पर कल आयोजित हुई एक संयुक्त प्रेस वार्ता में योगेंद्र यादव ने कहा था कि हमारे दो कानून पर सरकार अभी तक टस से मस नहीं हुई है। इसलिए अब आंदोलन को तेज किया जाएगा। सरकार के साथ 4 जनवरी को वार्ता है। यदि उसमें सकारात्मक परिणाम नहीं निकलते हैं तो 6 जनवरी से 20 जनवरी तक देश में जागृति अभियान चलाया जाएगा।
आंदोलनकारियों ने कहा है कि 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर पूरे देश में कार्यक्रम किया जाएगा। अब यूपी के शाहजहांपुर में भी किसान मोर्चा लगाया जाएगा। गुजरात में और उत्तर प्रदेश में भी सरकारों ने कानून को ताक पर रखा हुआ है। हम गुजरात के साथियों के संपर्क में हैं। सरकार की ऐसी हालत हो गई है कि इन्हें किसानों का समर्थन जताने के लिए एक भी असली किसान नहीं मिलता।'.