दिल्ली के बॉर्डरों पर डेरा डाले बैठे आंदोलनकारियों और सरकार के बीच आठवें दौर की वार्ता सोमवार को होनी है। इससे पहले ही कुछ संगठनों के नेता अपना एजेंडा सामने रखने लगे हैं। आखिर ऐसा क्यों है? आंदोलनकारी 23 जनवरी को राजभवनों का घेराव, 26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च और 28 जनवरी को दिल्ली में घुसने की चेतावनी क्यों जारी करने लगे हैं। क्या आंदोलनकारियों के नेता खाई क्यों बढ़ाना चाहते हैं? ये और इन जैसे तमाम सवाल हैं जो नीति और नीयत दोनों पर शक पैदा करते हैं। बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश सिंह का कहना है कि सरकार कानूनों में संशोधन को तैयार है।
सरकार आंदोलनकारियों की बात सुनने और उसका हल निकालने के लिए एक्सपर्ट कमेटी बनाने पर सहमत है। 30 दिसंबर को जिन मुद्दों और आश्वासनों के साथ वार्ता की अगली तारीख तय की गई थी उन पर सरकार की ओर कोई वादा खिलाफी नहीं की गई है। कुछ आंदोलनकारी नेता वितंडा फैलाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। लगभग पूरे देश के किसान समझते हैं कि कानूनों से उनका लाभ हो रहा है। तो फिर वो क्यों विरोध करेंगे। कुछ वामपंथी नेताओं के पास इस समय कोई मुद्दा नहीं है। बस इसीलिए इसको मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं
बहरहाल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आंदोलन को देखते हुए सीनियर पुलिस अफसरों को फिर मैदान में उतारा दिया है। सूबे के 17 जिलों में सीनियर पुलिस अफसर भेजे गए हैं। मुरादाबाद में एडीजी राजीव कृष्ण, लखीमपुर खीरी में आईजी लक्ष्मी सिंह, पीलीभीत में आईजी राजेश पांडे, शाहजहांपुर में डीआईजी शलभ माथुर, बिजनौर में डीआईजी अखिलेश मीणा समेत सीनियर पुलिस अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई है। आंदोलनकारियों और सरकार की बातचीत से पहले कानून व्यवस्था से लेकर तमाम गतिविधियों पर ये सीनियर पुलिस अफसर नजर रखेंगे।
इसी बीच बारिश और सर्दी ने दिल्ली-यूपी के गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की परेशानी बढ़ा दी है। गाजीपुर बॉर्डर बैठे आंदोलनकारियों को उम्मीद है कि सरकार मांगें मान लेगी। लेकिन आंदोलनकारियों के नेताओं में से एक दर्शनपाल सिंह ने कहा कि अगर सोमवार को बात नहीं तो आंदोलन को तेज किया जाएगा। राजभवनों का घेराव और 26 जनवरी के बाद दिल्ली में घुसा जाएगा।.