चीन में मुसलमानो को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है और पाकिस्तान की इमरान सरकार चीन के तलुवे चाट रही है। पाकिस्तानी सरकारों की मजबूरी है कि अगर वो चीन की चाटुकारिता नहीं करेंगी तो पाकिस्तान फेल्ड स्टेट घोषित हो जाएगा। पाकिस्तान का अपना कोई खास रेवेन्यु नहीं है। प्रोडक्शन निल और निर्यात निल है। इनकम के साधन नहीं है। इसलिए यह जानते हुए भी कि चीन मुसलमानों का दुश्मन है, फिर भी पाकिस्तान की इमरान सरकार चीन की शी जिनपिंग सरकार के दमनचक्र पर आंखें मूंदे बैठा है। इसी बात का फायदा उठाते हुए चीन ने शिनजियांग में रहने वाले उईगर मुसलमानों के साथ ही साउथ चाइना सी से लटे सान्या शहर में रहने वाले उत्सुल मुसलमानों पर कहर ढाना शुरु कर दिया है। सान्या में मुसलमानों की नस्ली पहचान खत्म करने की साजिश की जा रही है। सान्या में मस्जिदों के निर्माण पर रोक लगा दी गई है। पहले से मस्जिदें थीं उन्हें गिराया जा रहा है। मुसलमान बच्चों को कुरान और अरबी भाषा पढ़ने पर रोक लगा दी गई है। इतना ही नहीं सान्या लाउड स्पीकर पर अजान पढना जुर्म है। जिस घर से भी अजान की आवाज आती है उस घर को ढहा दिया जाता है और घर के मालिक को सरकारी आदेशों के उल्लंघन के आरोप मे जेल की काल कोठरी में डाल दिया जाता है। चीन में एक बार जो शख्स जेल के भीतर गया उसके बाहर आने की संभावना न के बराबर होती है।
ऐसी खबरें आ रही हैं कि सान्या शहर में रहने वाले 10हजार उत्सुल मुस्लिमों पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने दमन की सारी हदें पार कर दी हैं। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ऐसे कदम उठा रही है जिससे उत्सुल मुस्लिमों की धार्मिक पहचान खत्म हो जाए और वो कम्यनिस्टों के 'लाल रंग' में रंग जाएं। हैनान द्वीप पर बसे इस शहर में कम्युनिस्ट पार्टी ने विदेशी प्रभाव और धर्मों के खिलाफ एक मुहिम सी चला रखी है। स्थानीय धार्मिक नेताओं ने बताया कि इससे पहले चीनी प्रशासन उत्सुल मुस्लिमों को उनकी पहचान बनाए रखने का समर्थन करता था लेकिन शी जिनपिंग की सरकार आने के बाद अब उत्सुल मुस्लिमों की पहचान को खत्म करने की मुहिम शुरू हो गई है।
कम्युनिस्ट पार्टी की अब कोशिश है कि पूरे चीन में एक ही संस्कृति हो और सभी उसे मानें। उधर, कम्युनिस्ट पार्टी का दावा है कि चीन में इस्लाम और मुस्लिम समुदाय पर लगाई गई पाबंदियों का उद्देश्य हिंसात्मक धार्मिक अतिवाद पर काबू पाना है। चीनी प्रशासन ने उइगर मुस्लिमों के खिलाफ अपने अभियान को इसी आधार पर न्यायोचित ठहराया है। अमेरिका के मेरीलैंड में चीन के मुस्लिमों के विशेषज्ञ प्रफेसर मा हैयून कहते हैं, 'उत्सुल मुस्लिमों पर कड़ा नियंत्रण स्थानीय समुदायों के खिलाफ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के वास्तविक चेहरे को उजागर करता है। यह सरकार के नियंत्रण को मजबूत करना है और यह पूरी तरह से इस्लाम विरोधी है।'
चीन में शी जिनपिंग की सरकार आने के बाद मस्जिदों को तोड़ने, उनके गुंबदों को बर्बाद करने और उइगर मुस्लिमों के खिलाफ दमन काफी बढ़ गया है। स्थानीय मस्जिद के मौलवी ने बताया कि उन्हें अजान के लिए लगाए गए लाउडस्पीकर को गुंबद के ऊपर से हटाकर जमीन पर रखने के लिए कहा गया है। यही नहीं उसकी आवाज को भी धीमा कर दिया गया है। इसके अलावा अरब देशों की शैली में बनाई जाने वाली मस्जिदों के निर्माण कार्य को रोक दिया गया है।
यही नहीं शहर में 18साल से कम उम्र के बच्चों को अरबी पढ़ने पर रोक लगा दी गई है। उधर, उत्सुल मुस्लिमों का कहना है कि अरबी पढ़ने से उनकी इस्लाम के बारे में जानकारी बढ़ती थी और अरब देशों से आने वाले पर्यटकों से संवाद करना आसान होता है। मुस्लिमों को अब मस्जिदों में गुंबद बनाने से रोक दिया गया है। कुछ दिन पहले ही लड़कियों को कई स्कूलों में हिजाब पहनने से रोक दिया गया था।