उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली शवनम अपनी जिंदगी के आखिरी दिन गिन रही है। मौत मिनट मिनट दर मिनट उसके नजदीक आ रही है। शबनम को चारों ओर फांसी का फंदा ही दिखाई दे रहा है। इसलिए उसने अब जेल में बंद अन्य महिला कैदियों को सिलाई सिखाना बंद कर दिया है। उसने खुद को अपनी बैरक तक सीमित कर लिया है। जेल की बंदी रक्षक उसकी गतिविधियों पर खास निगाह रख रही रही हैं। शबनम और उसके आशिक ने 7 लोगों की हत्या कर दी थी। शबनम और आशिक दोनों को फांसी की सजा हुई है। मीडिया में यह केस इस लिए चर्चा में है क्यों कि शबनम पहली महिला अपराधी होगी जिसे आजादी के बाद फांसी दी जाएगी।
शबनम ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास दया याचिका भेजी है। शबनम को उम्मीद है कि शायद उसे इस बार माफी मिल जाए। हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज हो चुकी है लेकिन इस जघन्य हत्याकांड के दोषी शबनम और सलीम के पास अभी भी विकल्प मौजूद हैं।
इस केस में जिला अदालत ने 2010 में दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा दी थी। 2015 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां भी लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से भी 11 अगस्त 2016 को शबनम की दया याचिका को ठुकरा दिया गया था।
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट से शबनम की फांसी की पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई थी। शबनम रामपुर जेल में बंद है और अपनी फांसी की सजा का इंतजार कर रही है। अब शबनम से राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास अपनी याचिका भिजवाई है तो वहीं उसके बेटे ने भी राष्ट्रपति से मां के लिए दया की गुहार लगाई है। शबनम का बेटा नाबालिग है और मां से मिलने जेल जाता रहता है।
सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा मिलने के बाद कोई भी शख्स, विदेशी नागरिक अपराधी के लिए राष्ट्रपति के दफ्तर या गृह मंत्रालय को दया याचिका भेज सकता है। इसके अलावा संबंधित राज्य के राज्यपाल को भी दया याचिका भेजी जा सकती है। राज्यपाल अपने पास आने वाली दया याचिकाओं को गृह मंत्रालय को भेज देते हैं।
इन दो अपीलों के बाद शबनम के पास फिलहाल उम्मीद बची है कि शायद उसे राष्ट्रपति से राहत मिल जाए। हालांकि अगर राष्ट्रपति रिव्यू पिटिशन में फैसला बरकरार रखते हैं तो शबनम फांसी की सजा पाने वाली आजाद भारत की पहली महिला कैदी होगी।