हरिद्वार में लग रहा कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन कहलाता है। कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है लेकिन इस बार कुंभ का मेला एक साल पहले लगाया गया, इसके पीछे का कारण 2022 में गुरु कुंभ राशि में न होना। जिसके चलते इस बार 11वें साल में कुंभ का आयोजन किया गया। इसके अलावा, कुंभ हर साल जनवरी से लेकर अप्रैल तक चलता है लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों की वजह से ये सिर्फ एक महीना यानी अप्रैल तक ही सीमित रहेगा। कुंभ में शाही स्नान का काफी महत्व है। अगला शाही स्नान 12 अप्रैल को होगा। मान्यता है कि कुंभ में शाही स्नान करने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते है।
कुंभ के अमृत जल में स्नान करने से सभी पाप का अंत होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहते हैं कुंभ के स्नान से पितृ भी शांत होते हैं और उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। शाही स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह 4 बजे रहता है। शाही स्नान वाले दिन भीड़ बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में अधिकारियों ने पूरी तैयारी कर ली है। संक्रमण को रोकने के लिए अधिकारियों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी सौंप दी है। ये अधिकारी स्नान करने आए श्रद्धालुओं पर नजर रखेंगे कि वो कोरोना गाइडलाइन्स को फॉलो कर रहे है या नहीं, हरिद्वार से लेकर देवप्रयाग तक चप्पे-चप्पे पर 12000 पुलिस और 400 अर्धसैनिक बल तैनात किए गए है, जो कानून और व्यवस्था के साथ ही कोविड प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करवाएंगे।
क्या है शाही स्नान- नाम से ही जैसा पता चलता है कि ये शाही अंदाज में होता है। साधु-संत स्नान के खास मुहूर्त से पहले साधु तट पर इकट्ठा होते है और जोर-जोर से नारे लगाते है। साधु-संतों से पहले कोई भी स्नान करने गंगा तट पर उतर नहीं सकता। करीब 13 अखाड़ों के साधु-संत जब स्नान कर लेते है, उसके बाद ही आम जनता को स्नान करने का अवसर दिया जाता है। शाही स्नान की परंपरा सदियों से चलती आ रही है। माना जाता है शाही स्नान की शुरुआत 14वीं से 16वीं सदी के बीच हुई थी। उस दौरान मुगलों का शासन था। धर्म अलग-अलग होने के कारण साधु-संत और मुगल शासकों के बीच लड़ाईयां होती थी।
जब ये लड़ाइयां उग्र रुप लेने लगी तो मुगलों ने एक बैठक की और धर्म का सम्मान देते हुए तय किया कि वो धर्म के काम में कोई दखल नहीं देंगे। इस बैठक में काम और झंड़े के अलावा हर छोटी से छोटी चीजों का बंटवारा किया गया। साधुओं का सम्मान देते हुए मुगलों ने कुंभ में साधु-संतों की राजा-महाराजाओं जैसी पेशवाई निकलवाई। साथ ही उन्हें पहले स्नान करने का मौका दिया। ये सब एक राजशाही अंदाज में था। यही वजह है कि इस स्नान को शाही स्नान कहा जाता है। शाही स्नान से पहले आपको कुछ बातों का ख्याल रखना होगा। शाही स्नान से पहले और बाद में आपको नशीले पदार्थ को ग्रहण नहीं करना है। साथ ही अपने मन में किसी भी तरह के गलत विचारों को आने नहीं देना है।