आजकल अजरबैजान (Azerbaijan) का नाम हर जुबान पर है। उसका कारण मुस्लिम देश अजरबैजान (Azerbaijan) और ईसाई देश अर्मेनिया के बीच जंग है। हम यहां युद्ध के कारण या नतीजों पर चर्चा नहीं कर रहे। दोनों ही देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध है।
अर्मेनिया में भी हिंदु मंदिर हैं। लेकिन हम यहां मुस्लिम देश अजरबैजान (Azerbaijan) के एक ऐसे मंदिर की चर्चा करने जा रहे हैं जो हजारों साल पुराना है और उसमें अखण्ड ज्योति जल रही है। संस्कृत में ऋचाएं पत्थरों पर उकेरी गई हैं। मुस्लिम देश अजरबैजान (Azerbaijan) की सरकार ने इस हिंदु मंदिर को सहेज कर रखा है। वहीं, 1947 तक हमारा वो हिस्सा जो टूटकर पाकिस्तान बना वहां मंदिर तोड़े जा रहे हैं। मंदिरों में अखण्ड ज्योति जलाना तो बहुत दूर की बात यहां सुबह शाम की आरती भी मुश्किल है।
भारत के सांस्कृतिक संबंधों का साक्ष्य
दरअसल, भारत का प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास पश्चिम में मध्य एशिया और ईरान से लेकर दक्षिण-पूर्व में मलेशिया और इंडोनेशिया तक फैला हुआ था। समय समय पर कुछ ऐसी बातें सामने आती हैं और कुछ खुदाई में ऐसे साक्ष्य निकलते हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं।
संस्कृत और गुरमुखी में हैं मंदिर के अभिलेख
अज़रबैजान (Azerbaijan) की राजधानी बाकू में सदियों पुराना गणेश मंदिर है जिसे आग का मंदिर यानी आतिशगाह भी कहते हैं, इस मंदिर में हर समय आग (अखण्ड ज्योति) जलती रहती है जो ज़मीन के अंदर से निकलती है। मंदिर परिसर में संस्कृत, फ़ारसी और गुरुमुखी में अभिलेख भी मिले हैं। यहां एक गणेश और नटराज की मूर्ति भी रखी हुई है जिसे संभवत: यहां आने वाले भारतीय व्यापारियों ने रखा होगा। जो ये दिखाती है कि प्राचीन समय में भारत से व्यापारी इस मार्ग से यूरोप और दुनिया के दूसरे हिस्सों में जाते थे।
लेकिन जहां तक इस मंदिर के निर्माण की बात है तो पुरातात्विक साक्ष्य इस बात की ओर संकेत करते हैं कि ये मंदिर 16-17वीं शताब्दी में बनाया गया था और मुख्य रूप से इसे भारत से आने वाले व्यापारियों ने बनवाया था। वो व्यापारी अपनी आगे की यात्रा के लिये यहां पड़ाव डालते थे और कुछ समय रुक कर आराम करते और अपने जानवरों को चारा-पानी देते थे, साथ ही वो लोग ईश्वर का ध्यान भी करते थे, इसलिये उन भारतीय व्यापारियों ने यहां पर एक मंदिर भी बनवाया जिससे वो खुद को प्रकृति के साथ जोड़ सकें, यहां पर तीनों धर्मों के लोग अपने अपने तरीके से पूजा पाठ किया करते थे।
बाकू का आतिशगाह
बाकू में ‘आतिशगाह’ जाते समय रास्ते में बोर्ड लगा है उसपर “यानार दाग” लिखा है जिसका अज़रबैजानी भाषा में मतलब होता है “जलता पहाड़”। जानकारों की राय में ये आतिशगाह 2600 वर्ष पुराना है। हिन्दुओं के साथ साथ ये जगह ईरान के पारसियों का भी पूजा स्थल है क्योंकि पारसी लोग अग्नि पूजक होते हैं। यहां फ़ारसी भाषा में भी प्राचीन अभिलेख मिले हैं। प्राचीन समय में यहां पर हिन्दू संन्यासी और पारसी लोग आकर पूजा पाठ करते थे, साथ ही साधना भी करते थे। युनेस्को ने अजरबैजान (Azerbaijan) के इस मंदिर को विश्व धरोहर की श्रेणी में रखा है। बाकू पुराने समय में रेशम मार्ग के रास्ते में आता था और यहां पर पूर्वी देशों के व्यापारी आकर अपनी यात्रा, यूरोप और मध्य एशिया के बाकी देशों में बढ़ाते थे।
नटराज और गणेश की प्रतिमाएं
आतिश गाह मंदिर में अज़रबैज़ान की सरकार ने कई अलग अलग कमरे बना रखे हैं जिन्हें म्यूज़ियम के तौर पर सजाया गया है, जहां एक कमरे में कुछ मूर्तियां ईरानी वस्त्रों में अलग अलग भाव भंगिमाओं में बनीं हैं वहीं एक दूसरे कमरे में नटराज और भगवान गणेश की मूर्ति लगी है, वहीं कुछ साधुओं की मूर्तियां लगाई गई हैं और बैकग्राउंड में गणेश वंदना की मंत्रध्वनि स्पीकर से आती है जो इस कमरे में मंदिर का वातावरण बनाती है।
ठीक इसी तरह एक अलग कमरे में कुछ यात्रियों की मूर्तियां आराम करने की मुद्रा में बनाई गई हैं, कुल मिलाकर ये छोटा सा म्यूज़ियम प्राचीन समय की एक झाँकी प्रस्तुत कर रहा है कि उस समय लोग कैसा जीवन जीते थे और यहां आकर वो अपना समय कैसे बिताते थे। .