"हरि के आने की सुनी मैंने खबर, देखती हूं चढ़ के अपने बाम पर। आ रहे हैं मेरे घर कब हरि मेरे मुन्तजिर हूं मैं, जवां है हौसले।" ये मीराबाई के वो पद हैं जो श्रीकृष्ण भगवान के लिए वो गाया करती थीं। हालांकि ये बात जानकर हैरानी होगी कि अब आप इन पदों को उर्दू में भी पढ़ सकते हैं।
यूपी के रहने वाले हाशिम रजा जलालपुरी ने मीराबाई की 209 पदों (भजन) को 1510 शेर में तब्दील किया है। दरअसल मीराबाई की पदावली किताबों में पढ़ाई जाती है। लेकिन उनकी पदावली को ब्रज भाषा से उर्दू शायरी में अनुवाद करना हाशिम रजा के लिए आसान नहीं था। इस काम को करने में उन्हें पूरे 5 साल लग गए और कड़ी मेहनत के बाद ये मुमकिन हो सका।
दरअसल, मीराबाई ने अपने गीतों में राजस्थानी, ब्रज भाषा, अवधी और गुजराती समेत कई जब़ानों के लफ़्जों का इस्तेमाल किया है। हाशिम रजा जलालपुरी ने आईएएनएस को बताया, "मुझे बचपन से ही मीराबाई की पदावली पढ़ना और सुनना बेहद पंसद है। यही कारण रहा कि मैंने जब मीराबाई की पदावली का उर्दू अनुवाद करने का मन बनाया तो फिर पीछे कभी मुड़कर नहीं देखा।"
उन्होंने आगे बताया कि मीराबाई ने उस जमाने में जो बात कही उसको लोग सिर्फ ब्रज भाषा में ही पढ़ते रहे हैं। उर्दू एक ऐसी जुबान है जिससे बड़े पैमाने पर लोग जुड़े हुए हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने हिंदी के जानकारों के लिए भी देवनागरी में इस शायरी को भी लिखा है, जो आसानी से पढ़ी जा सकती है। वहीं अब उनकी कोशिश कबीर के दोहों का उर्दू तजुर्मा करके दुनिया के सामने लाने की है। जिसके लिए वह इस समय काम कर रहें हैं।
हाशिम रजा के मुताबिक मीराबाई दुनिया की सबसे बड़ी शायरा हैं, शायरी की दुनिया में सिर्फ दो कवयित्रियां ऐसी हैं जिन्हें सूरज और चांद का मुकाम दिया जा सकता है। पहली प्राचीन यूनान की कवयित्री सेफों, दूसरी हमारे हिंदुस्तान की कवयित्री मीरा। दोनों की शायरी इश्किया शायरी है। दोनों की शायरी भावनाओं की शायरी है। वहीं दोनों की शायरी औरत के एहसासों की शायरी है।
दरअसल हाशिम रजा जलालपुरी का ताल्लुक अवध की इल्मी और अदबी सरजमीन जलालपुर से है। जलालपुर शायरों, लेखकों और दानिशवरों की धरती मानी जाती है। गंगा-जमुनी तहजीब सम्मान और उर्दू रत्न से सम्मानित हाशिम रजा जलालपुरी अपनी शायरी और निजामत के हवाले से मुशायरों और कवि सम्मेलनों में जाना-पहचाना नाम हैं। मगर मीराबाई के 209 पदों को 1510 अशआर (शायरी) में अनुवाद करने का कारनामा हाशिम रजा जलालपुरी को अपने दौर के शायरों से अलग करता है। उनके इस कारनामे की जितनी प्रशंसा और सराहना की जाए कम है।
हाशिम रजा ने आईएएनएस को बताया कि, "मैंने अपनी किताब का पोस्टर सोशल मीडिया पर लॉन्च किया था। तो उस वक्त मेरी आलोचना की गई और कहा गया कि एक मुसलमान ये कैसे कर सकता है। लेकिन मैंने सभी लोगों की बातों को दरकिनार कर इस किताब को पूरा किया और आज मैं बहुत खुश हूं।".