शनिवार को नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट की तरफ से 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति, तब और अब' विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वाइस चेयरमैन भूषण पटवर्धन ने इस अवसर पर कहा, "नई शिक्षा नीति देश की शिक्षा की बदलती जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। इसमें परंपरा और आधुनिकता का समन्वय देखने को मिलता है। नई शिक्षा नीति से भारत में शिक्षा का स्तर सुधरेगा और शिक्षा समाज की जरूरतों को भी पूरा करेगी।"
उनके अनुसार इस शिक्षा नीति में तकनीक और मूल्य दोनों का समन्वय किया गया है। उन्होंने कहा, "केवल अध्यापक की बजाय एक सही गुरु की भूमिका होनी चाहिए, जो छात्र को जानकारी ही न दे बल्कि उसके कौशल और दृष्टिकोण का भी विकास करे।"
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नागेश्वर राव ने कहा, "शिक्षा में आधुनिक तकनीक का समावेश आज समाज की जरूरत बन गई है। नई शिक्षा नीति में तकनीक के इस्तेमाल को भी विशेष रुप से ध्यान में रखा गया है।"
वाइस चांसलर एवं यूजीसी कमीशन की सदस्य प्रोफेसर सुषमा यादव ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सामाजिक पक्ष को सामने रखते हुए कहा कि, " यह शिक्षा नीति समाज के सभी वर्गों के हित को ध्यान में रखकर बनाई गई है। मातृभाषा में शिक्षा का प्रावधान इसका एक प्रमाण है। ये शिक्षा नीति अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्गों, दिव्यांगों और ट्रांसजेंडर सभी वर्गों के हितों का समावेश करने वाली है।
भारतीय शिक्षण मंडल के मुकुल कानिटकर ने कहा, "गुणवत्ता ,उत्तरदायित्व और अकादमिक स्वायत्तता नई शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण आयाम हैं। ये शिक्षा नीति भारत केंद्रित वैश्वीकरण की वकालत करती है। इसका लक्ष्य भारत को शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना है। शिक्षकों को नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।"
इस अवसर पर नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के अध्यक्ष डॉक्टर ए के भागी ने कहा, "एनडीटीएफ इस वेबीनार विमर्श के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक विस्तृत दस्तावेज तैयार कर सरकार के समक्ष पेश करेगा। ये इसलिए किया जा रहा है ताकि इस नीति के सकारात्मक पहलुओं को जल्द से जल्द लागू कराया जा सके। जहां कुछ कमियां हैं, उनकी तरफ सरकार का ध्यान आकर्षित कर उनमें अपेक्षित सुधार भी हो।"
.