भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि के लिए कोराना की आपदा अब अवसर में बदल रही है। कृषि उत्पादन में इजाफा होने के साथ-साथ विदेश व्यापार में भी इसकी हिस्सेदारी बढ़ने से किसानों को उनकी फसलों का बेहतर दाम मिलने की उम्मीद जगी है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल, चीनी, गेहूं, मक्का समेत तमाम कृषि उत्पादों के दाम में बेतहाशा वृद्धि हुई है। वैश्विक बाजार में कृषि उत्पादों के दाम बढ़ने से भारत के निर्यात में भी इजाफा हो रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं का भाव बढ़ने और भारत में उत्पादन में बढ़ोतरी से दाम पर दबाव से निर्यात की संभावना बढ़ गई है। जानकार बताते हैं कि भारत चावल का परंपरागत निर्यातक है, लेकिन छह साल बाद वैश्विक बाजार में गेहूं के अपने सरप्लस स्टॉक को खपाने का भी मौका है।
चालू वित्त वर्ष के आरंभिक नौ महीने यानी अप्रैल से दिसंबर के दौरान गेहूं के निर्यात के मूल्य में पिछले साल के मुकाबले 456 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि गैर-बासमती चावल के निर्यात के मूल्य में करीब 123 फीसदी का इजाफा हुआ है। इसकी एक बड़ी वजह वैश्विक बाजार अनाजों के दाम में आई जोरदार तेजी है।
अंतराष्ट्रीय बाजार में जून 2020 के बाद गेहूं के भाव में 48 फीसदी से ज्यादा की तेजी आई है। वहीं, मक्के का भाव अप्रैल 2020 के बाद 91 फीसदी से ज्यादा उछला है। वैश्विक बाजार में मोटे चावल की बात करें तो इसका भाव 110 फीसदी से ज्यादा उछला है।
वैश्विक बाजार में गेहूं का भाव करीब सात साल की उंचाई पर चला गया है और मक्के का दाम भी करीब आठ साल के उंचे स्तर पर है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना काल में कई देशों में सप्लाई चेन प्रभावित होने से कृषि व संबद्ध क्षेत्र के उत्पादों के दाम में इजाफा हुआ है, जिसका फायदा भारतीय उत्पाद को मिल रहा है।
कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण (एपीडा) के तहत आने वाले बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (बीईडीएफ) के निदेशक पद से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए ए.के. गुप्ता ने आईएएनएस से कहा कि खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु है जिसकी वैश्विक मांग कोरोना काल में भी बनी हुई थी, मगर कुछ देश सप्लाई करने की स्थिति में नहीं थे जिससे भारत को बेहतर अवसर मिला। उन्होंने कहा कि भारत ने अपनी बड़ी आबादी को मुफ्त अनाज मुहैया करने के साथ-साथ दुनिया के देशों को भी अनाज मुहैया करवाया। इसका श्रेय देश के किसानों को जाता है जिन्होंने रिकॉर्ड अनाज पैदा किया।
कृषि विशेषज्ञ इसका श्रेय केंद्र सरकार को भी देते हैं जिसने फसलों की बुवाई और कटाई से लेकर उर्वरकों और कृषि यंत्रों की सप्लाई समेत कृषि से संबंधित तमाम गतिविधियों को देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान छूट दे दी थी। कोरोना महामारी के संकट की घड़ी में भी देश का अन्न भंडार भर रहा है। बेशक यह किसानों की मेहनत और सरकार की ओर से सही समय पर लिए गए फैसलों का नतीजा है। साथ ही, मानसून भी मेहरबान रहा है।
भारतीय मौसम विज्ञान के महानिदेशक डॉ. मृत्युंजय महापात्र ने आईएएनएस से कहा कि विगत कुछ वर्षों से देश में मानसून अनुकूल रहा है जिससे किसानों को फायदा मिला है। विगत में 2014-15 और 2015-16 में बारिश औसत से क्रमश: 12 फीसदी और 14 फीसदी कम रही, लेकिन उसके बाद से मानसून अनुकूल रहा है जिससे अनाजों के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है।
हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी फसल वर्ष 2020-21 (जुलाई-जून) के दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार देश में खाद्यान्नों का उत्पादन 30.33 करोड़ टन रह सकता है जिनमें चावल का उत्पादन रिकॉर्ड 12.03 करोड़ टन, गेहूं का रिकॉर्ड 10.92 करोड़ टन, पोषक व मोटा अनाज 493 लाख टन, मक्का 301.6 लाख टन और दलहनी फसल 244.2 लाख टन शामिल है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान आरंभिक नौ महीनों में 22,856 करोड़ रुपये (306.8 करोड़ डॉलर) मूल्य का गैर-बासमती चावल का निर्यात किया है, जो पिछले साल के मुकाबले रुपये के मूल्य में 122.61 फीसदी ज्यादा है। वहीं, बासमती चावल का निर्यात चालू वित्तवर्ष में अप्रैल से दिसंबर के दौरान करीब 22,038 करोड़ रुपये (294.7 करोड़ डॉलर) मूल्य का हुआ जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले रुपये के मूल्य में 5.31 फीसदी अधिक है।
भारत ने 2020-21 में अप्रैल से दिसंबर के दौरान 1,870 करोड़ रुपये (25.2 करोड़ डॉलर) मूल्य का गेहूं निर्यात किया है, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में गेहूं का निर्यात 336 करोड़ रुपये (480 लाख डॉलर) मूल्य का हुआ था। भारत अपने पड़ोसी देश नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश के अलावा मिड्डल-ईस्ट के देशों को गेहूं निर्यात कर रहा है।
बाजार के जानकार बताते हैं कि बांग्लादेश रूसी गेहूं का एक बड़ा खरीदार है, लेकिन रूस द्वारा निर्यात पर प्रतिबंध लगने से बांग्लादेश भारत से अपनी खरीदारी बढ़ा सकता है। कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना कहते हैं कि भारत को कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के लिए उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ बेहतर रणनीति के साथ काम करना होगा जिसमें दिपक्षीय व्यापारिक समझौता अहम साबित होगा।