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प्राइवेटाइजेशन के लिए 4 बैंक शॉर्टलिस्ट, जानिए क्या होगा करोड़ों ग्राहकों पर असर

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आम बजट के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने यह ऐलान किया था कि इस साल दो और बैंकों का निजिकरण किया जाएगा। सरकारी बैंकों को बेचकर सरकार राजस्व कमाना चाहती है ताकि उस पैसे का उपयोग सरकारी योजनाओं पर हो सके। हालांकि उस भाषण में उन्होंने बैंकों के नाम नहीं बताए थे। अब खबर है कि केंद्र सरकार ने 4 सरकारी बैंकों को शॉर्टलिस्ट कर लिया है, कहा जा रहा है कि इनमें से दो बैंकों का निजीकरण अगले वित्त-वर्ष में किया जाएगा।

बाकी दो बैंकों का आगे निजीकरण किया जाएगा। जिन बैंकों को निजीकरण के लिए चयनित किया गया है, उनमें बैंक ऑफ महाराष्ट्र , बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया शामिल हैं।  हालांकि यह मामला अभी सार्वजनिक नहीं हुआ है और प्राइवेटाइजेशन के कयास ही लगाए जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक 4 में 2 बैंकों का प्राइवेटाइजेशन 2021-22 के वित्तीय वर्ष में हो सकता है जो अप्रैल में शुरू होगा।

सरकार फिलहाल छोटे बैंकों से कदम आगे बढ़ा सकती है क्योंकि इससे आगे के बारे में अंदाजा मिल जाएगा। सूत्रों ने यह भी बताया कि आने वाले वर्षों में बड़े बैंकों को भी बेचने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। हालांकि स्टेट बैंक में सरकार अपनी बड़ी हिस्सेदारी रखना जारी रखेगी क्योंकि इसके जरिये देश के ग्रामीण इलाके में कई सरकारी योजनाएं चलाई जाती हैं। बैंकिंग सेक्टर में प्राइवेटाइजेशन का काम पहले भी हो चुका है। आईडीबीआई एक सरकारी बैंक था, जो 1964 में देश में बना था। LIC ने IDBI में 21000 करोड़ रुपये का निवेश करके 51 फीसदी हिस्सेदारी ख़रीदी थी। इसके बाद LIC और सरकार ने मिलकर 9300 करोड़ रुपये IDBI बैंक को दिए थे। IDBI Bank में LIC की 51 फीसदी और सरकार की 47 फीसदी हिस्सेदारी है।

इस वक्त सरकार के पास 10 बैंकों में 70 फीसदी के ज्यादा की हिस्सेदारी है। जबकि 8 बैंकों में 80 फीसदी से भी ज्यादा की हिस्सेदारी है और तीन बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है, और वे बैंक इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र हैं।