अमेरिका के ऋण चूकौती की विफलता को देखते हुए विश्व मंच पर अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व जल्द ही अतीत की बात हो सकता है। रूस पर कड़े प्रतिबंधों के बीच वैकल्पिक भुगतान प्रणाली से निपटने के लिए एक तंत्र के रूप में विडॉलरकरण पर अमल शुरू हुआ था, लेकिन अब अमेरिकी ऋण चूकौकी के विफलता के बढ़ते ख़तरों के साथ देश आक्रामक रूप से समाधान तलाश रहे हैं, जो कि प्रकृति में अधिक स्थायी हैं। कई शुरुआती मुद्दों के बावजूद भारत का रुपया और चीन का युआन वैश्विक स्वीकृति प्राप्त करना शुरू कर रहा है। नीति निर्माताओं ने कहा है कि ऐसे “मुद्दों” का उभरना स्वाभाविक है।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “ये समस्यायें वास्तविक समस्या हैं, हम इनकार नहीं करते हैं और रुपये के मामले में हमें भारतीय मुद्रा को अधिक स्वीकार्य बनाने के लिए उन्हें हल करना होगा।”
अमेरिकी डॉलर विदेशी मुद्रा बाज़ार में सबसे अधिक कारोबार के माध्यम वाली मुद्रा है।
Forex.com का कहना है कि वैश्विक स्तर पर औसतन अमेरिकी डॉलर लगभग 6.6 ट्रिलियन डॉलर दैनिक व्यापार करता है। यह मुद्रा दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखे गये विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा है।
यूएस ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने पिछले महीने सीएनएन को बताया, “जब हम डॉलर की भूमिका से जुड़े वित्तीय प्रतिबंधों का उपयोग करते हैं, तो एक ऐसा जोखिम होता है, जो कि समय के साथ डॉलर के आधिपत्य को कमज़ोर कर सकता है।”
यदि अमेरिकी ऋण सीमा- अधिकतम राशि जो एक देश उधार ले सकता है – को तुरंत नहीं बढ़ाया जाता है, तो अमेरिका वास्तव में डिफ़ॉल्ट हो सकता है।
इस बीच अमेरिकी सांसदों को कर्ज़ की सीमा बढ़ाने के मुद्दे पर अभी आम सहमति नहीं बनानी है।
जनवरी, 2023 तक कुल राष्ट्रीय ऋण 31.4 ट्रिलियन डॉलर था। ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के अनुसार, 2022 में ऋण-जीडीपी अनुपात 129 प्रतिशत था। रिपब्लिकन सदस्य ऋण की सीमा को बढ़ाये जाने का तबतक पुरज़ोर विरोध करते हैं, जब तक कि वाशिंगटन ख़र्च में भारी कटौती को मंज़ूरी नहीं दे देता।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शनिवार को कहा, “हम अभी संकट के बिंदु पर तो नहीं पहुंचे हैं, लेकिन कुछ बदलावों को लेकर ज़मीनी चर्चा हम सभी कर सकते हैं। लेकिन हम अभी तक वहाँ नहीं हैं।”
जहां कई देशों के लिए विमुद्रीकरण राडार पर रहा है, वहीं अमेरिकी मुद्रा ने दशकों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपना प्रभुत्व बनाये रखा है। सरकारी अधिकारी का कहना है, “लेकिन रूस पर प्रतिबंधों और फिर वैश्विक व्यवस्था में बदलाव के साथ-साथ अमेरिकी ऋण संकट ने अब उभरती अर्थव्यवस्थाओं सहित बाक़ी देशों को यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें जोखिम कम करने के लिए विकल्पों की आवश्यकता है।”
ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका) ब्लॉक का ही उदाहरण ले लें। यह ब्लॉक अब कई अन्य देशों के साथ आकर अपने विस्तार के लिए तैयार है, इसने संकेत दे दिया है कि यह अपनी स्वयं की मुद्रा प्रणाली बनाने पर काम करेगा। ब्रिक्स ब्लॉक का होने वाला यह विस्तार भू-राजनीतिक सत्ता के खेल में बदलाव और अमेरिकी प्रभुत्व के लगातार क्षरण का संकेत देता है।
एक तरफ़ दुनिया अमेरिका में विकास को क़रीब से देख रही है,तो दूसरी तरफ़ विश्लेषकों का कहना है कि चाहे वाशिंगटन डिफॉल्ट साबित हो या नहीं,लेकिन विडॉलरीकरण की क़वायद एक वास्तविकता है।