अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा अपने मंगल मिशन पर जुटी हुई है। वो अपने परसिवरेंस रोवर के जरिए मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश कर रही है। वहीं उनके केप्लर स्पेस टेलिस्कोप ने हैरान कर देने वाले आंकड़े रख दिए है। नासा के वैज्ञानिकों की खोज में पांच जुड़वां सितारों की प्रणाली मिली है। अब वैज्ञानिक ये रिसर्च करने में जुटे है कि इन सितारों के द्रव्यमान, उनकी चमक और सिस्टम के हिसाब से ग्रहों पर जीवन कितना मुमकिन है और कहां पानी की कितनी संभावना है। वैज्ञानिकों की मानें तो हर किसी में एक ग्रह ऐसा है, जहां जीवन की संभावना नजर आ रही है।
वैज्ञानिकों को धरती से 3970 प्रकाशवर्ष दूर बड़े सितारे का चक्कर लगाता हुआ वरुण के आकार का एक ग्रह भी मिला है। शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष में मिली 9 प्रणालियों के सितारों और ग्रहों के रहने लायक क्षेत्रों पर होने वाले असर का रिसर्च किया है। इनमें से जिस प्रणाली को उन्होंने चुना, उनमें एक वरुण के आकार का ग्रह है।
इसके लिए केप्लर 34, 35, 38, 64 और 413 को चुना गया। इनमें से 38 के धरती जैसा होने की संभावना मानी गई है। इसके एक सितारे का द्रव्यमान सूरज का 95 फीसद है और छोटे सितारे का द्रव्यमान सूरज का 25 फीसद है। अभी तक एक ग्रह को इसका चक्कर काटते देखा गया है, लेकिन उम्मीद है कि ऐसे और भी ग्रह होंगे।
सूरज के इर्द-गिर्द धरती की कक्षा अंडाकार है, जिससे विकिरण लगभग एक समान होता है। ये स्थिति ऐसे ग्रहों के लिए नहीं है, जहां दो सूरज हों। यहां दोनों से विकिरण और गुरुत्वाकर्षण का असर पड़ता है। 460 करोड़ साल पुराने उल्कापिंड में पानी पांच जुड़वां सूरज के साथ ही अंतरिक्ष की एक और हकीकत पता चली है।
पृथ्वी पर पाए गए 460 करोड़ साल पुराने उल्कापिंड में पानी के अंश पाए गए हैं। ये जब चट्टान बने थे, तब उल्कापिंड के भीतर जमा हुआ पानी और कार्बन डायऑक्साइड रहे होंगे। इसका मतलब उल्कापिंड ऐसी जगह पर बना होगा, जहां तापमान ऐसा रहा हो कि पानी और कार्बन डायऑक्साइड जम गए। धरती के बाहर चांद से लेकर मंगल तक पर पानी या बर्फ खोजी जा चुकी है।
इनके अलावा ठोस खनिजों के भीतर भी पानी के कण मिले हैं, जिनसे इतिहास में पानी की मौजूदगी के संकेत मिलते हैं। इसी तरह एक उल्कापिंड में नमक के क्रिस्टल में वैज्ञानिकों को पानी मिला है। कभी किसी ऐस्टरॉयड का हिस्सा रहे उल्कापिंड के धरती पर गिरने के बाद वैज्ञानिकों ने इसके टुकड़ों पर अध्ययन किया और पाया कि इस उल्कापिंड में जो नमक मिला है, वह भी कहीं और से आया था।
जापान की रित्सुमीकान यूनिवर्सिटी में विजिटिंग रिसर्च प्रोफेसर डॉ. अकीरा सुचियामा और उनके साथियों ने 460 करोड़ साल पुराने उल्कापिंड के टुकड़े पर अध्ययन किया। शोधकर्ताओं को एक कैल्साइट क्रिस्टम मिला, जिसमें बहुत कम मात्रा में तरल मौजूद थी और 15 फीसद कार्बन डायऑक्साइड। इससे पुष्टि होती है कि प्राचीन पिंड में कैल्साइट क्रिस्टल के अंदर पानी और कार्बन डायऑक्साइड दोनों हो सकते हैं।