आज विनायक चतुर्थी है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। आज चतुर्थी को दो शुभ योग रवि और सिद्धि बने रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने में दो चतुर्थी तिथि आती हैं। पूर्णिमा के बाद एक कृष्ण पक्ष और दूसरी अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष में चतुर्थी व्रत रखा जाता है। श्रद्धालु व्रत रख विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करते है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश का व्रत और पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त- आषाढ़ मास की तृतीया तिथि आज सुबह 08 बजकर 24 मिनट पर समाप्त हो रही है। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। दोपहर 02 बजकर 49 मिनट तक सिद्धि योग रहेगा। इस योग में किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।
विनायक चतुर्थी पूजा विधि- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद घर के मंदिर में सफाई कर दीप प्रज्वलित करें। दीप प्रज्वलित करने के बाद भगवान गणेश का गंगा जल से जलाभिषेक करें। फिर भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं। भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। इसके बाद भगवान गणेश की आरती करें और भोग लगाएं। श्रीगणेश जी को मोदक, लड्डूओं का ही भोग लगाएं। इस पावन दिन भगवान गणेश का ध्यान करें।
विनायक चतुर्थी में चंद्रमा का दर्शन करने की मनाही होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विनायक चतुर्थी को चंद्र दर्शन करने से जीवन में कलंक लगता है, इसलिए इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से बचें। पंचांग के अनुसार, आज चंद्रोदय का समय प्रातःकाल 07 बजकर 52 मिनट और चंद्रास्त का समय रात 09 बजकर 21 मिनट है।
विनायक चतुर्थी कथा- पंडित शरद चंद्र मिश्रा के अनुसार, एक बार माता पार्वती के मन में एक ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है। ऐसे ही वो अपने मन से एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीवन भरती हैं। इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। लेकिन जाने से पहले माता अपने पुत्र को आदेश देती हैं कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को कंदरा में प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है।
कुछ समय बीत जाने के पश्चात भगवान शिव वहां पहुंचते हैं। भगवान शिव जैसे ही कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वह बालक उन्हें रोक देता है। महादेव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं। लेकिन वह उनकी कोई बात नहीं सुनता है। जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर देते हैं। इस घटना का आभास जब माता पार्वती को हुआ तो वह स्नान करके कंदरा से बाहर आती हैं और देखती हैं कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा है।
यह दृष्य देखकर माता क्रोधित होती हैं। जिसे देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव अपने गणों को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का सिर ले आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो। शिवगण एक हाथी का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं। इसके बाद माता पार्वती शिवजी से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार में इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही उन्हें प्रथम पूज्य भी बनाया गया।