देश में कोरोना केस कम रहे हैं। लॉकडाउन में भी ढील दी गई है। हालांकि अभी कोरोना का खतरा बना हुआ है। वैक्सीनेशन जारी है। हर राज्य में वैक्सीन तेजी से लगाई जा रही है। इसी बीच कोविशील्ड की खुराकों के बीच गैप को लेकर भी लगातार बहस जारी है। केंद्र सरकार के द्वारा बनाए गए कोविड वर्किंग ग्रुप के चेयरपर्सन डॉ एन के अरोरा का कहना है कि दोनों खुराकों के बीच के अंतराल को भारत में ट्रायल करने के बाद बढ़ाया गया है।
डॉ अरोरा ने यह भी बताया कि कोविशील्ड की पहली डोज डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ 61 प्रतिशत प्रभावी है। डॉ एन के अरोरा ने बताया की टीकाकरण की शुरुआत में दोनों खुराकों के बीच का गैप सिर्फ चार हफ्तों का था, जिसे ट्रायल में आए नतीजों के बाद तय किया गया था। उस दौरान हमें पता चला था कि चार सप्ताह के गैप के बाद इम्युन अच्छी प्रतिक्रिया देता है। हालांकि कोविशील्ड के दोनों खुराकों के बीच बढ़ाए गए 12 से 16 हफ्ते के गैप को भी डॉ अरोरा ने देश में किए गए ट्रायल के हिसाब से सही बताया है। उन्होंने कहा कि ट्रायल के डेटा का अध्यन करने के बाद ही दोनों खुराकों के बीच गैप बढ़ाया गया है।
पहले चार हफ्ते के गैप के आधार पर ही काम किया जा रहा था लेकिन फिर डब्ल्यूएचओ के सुझावों के बाद इसे छह से आठ हफ्ते कर दिया गया। इसके पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने सुझाव दिया कि दोनों खुराकों में 12 हफ्ते का गैप देने के बाद वैक्सीन 65 से 80 प्रतिशत प्रभावशील रहती है। यह सुझाव उस दौरान आया जब हमारा देश डेल्टा वैरिएंट के साथ लड़ाई लड़ रहा था। डॉ एन के अरोरा ने कहा कि सीएमसी वेल्लोर के आंकड़ों और डेल्टा वैरिएंट के दौरान हजारों केसों के अध्यन के बाद यह दिखाया गया कि कोविशील्ड की पहली डोज डेल्टा वैरिएंट पर 61 प्रतिशत और इसकी दोनों खुराक 65 प्रतिशत प्रभावी हैं। उन्होंने यह भी बताया कि गैप को लेकर लिया गया वर्तमान फैसला सही है और आगे भी इसे जारी रखा जाएगा।