'कोरोना को लोगों ने मजाक समझ लिया। न मास्क लगाया और डिस्टेंस मेंटेन किया। खांसी-जुकाम-बुखार होते ही अस्पताल में डेरा जमा लिया। दवाएं खरीदकर घरों में इकट्ठी कर लीं। ऐसे में गंभीर मरीजों को अस्पतालों में जगह नहीं मिली। ऑक्सीजन का एक्सेसिव इस्तेमाल अभाव में बदल गया। रही-सही कसर नेता और अफसरों की कारगुजारी ने पूरी कर दी। नतीजा, अस्पतालों के बाहर लाइनें लगने लगीं और अस्पतालों के भीतर मरीज मरने लगे।'
क्या आप जानते हैं कि कोरोना के रोगियों को इलाज क्यों नहीं मिल पा रहा है? क्या आप जानते हैं कि मार्केट में दवाओं और ऑक्सीजन का अभाव क्यों हो रहा है? क्या आप जानते हैं कि आज जो हालात पैदा हुए हैं उनके लिए कौन जिम्मेदार हैं?
अगर आपको इन सवालों के जवाब जानने हैं तो AIIMS के डाइरेक्टर डॉक्टर आर. गुलेरिया और मेदांता के डॉक्टर नरेश त्रेहन की बातों को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। दरअसल, कोरोना के खौफ से अस्पतालों के बेड्स पर उन लोगों का कब्जा कर लिया जो बीमार तो थे लेकिन उनको हॉस्पिटलाइज्ड होने की जरूरत नहीं थी। इसी तरह ऑक्सीजन भी उन लोगों ने ज्यादा खरीद ली जिन्हें उसकी तत्काल आवश्यकता नहीं थी। आज जो हालात पैदा हुए हैं उसके लिए सरकार और अस्पताल मैनेजमेंट से ज्यादा हम आम आदमी ही हैं।
कोरोना की पहली लहर खत्म होने के बाद भी सरकार की ओर से लगातार कहा जा रहा था कि मास्क लगातार पहनें, सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर चलें। लेकिन बाजारों से लेकर ऑफिस दफ्तरों तक और रेल-बस से लेकर मेट्रो ट्रेन में हम लोगों ने मास्क को मजाक बना लिया था। अधिकांश लोग मास्क लगाते ही नहीं थे। जो लगाते भी थे वो मुंह पर टांग लेते थे नाक के ऊपर मास्क तो किसी किसी के ही दिखाई देता था। प्राइवेट वाहनों, जैसे दिल्ली में चलने वाली मेट्रो फीडर बस, ग्रामीण सेवा, ऑटो और ईरिक्शा में बैठे लोगों को देखकर डर लगता था। वही डर अब असलियत बन कर सामने आ गया है। इसके अलावा दिल्ली और एनसीआर के बीच चलने वाले डग्गामार वाहनों ने कोरोना को फैलाने में सबसे बड़ा रोल अदा किया है।
सड़क पर और प्राइवेट वाहनों में कोविड गाइड लाइंस सुनिश्चित कराने के लिए तैनात दिल्ली सरकार के सिविल डिफेंस के लोग चौथ-वसूली में बिजी रहते थे। दिल्ली से नोएडा, दिल्ली से बदरपुर, दिल्ली से फरीदाबाद और गुडगांव के लिए चलने वाले डग्गामार मार वाहन कोविड गाइड लाइंस पर निगाह रखने वालों की मुट्ठियां गरम करते रहे और कोरोना आसानी से हमारे आपके घर में पहुंचता रहा।
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इन्हीं सब की बदौलत कोरोना ने विकराल रूप दिखा दिया दूसरी लहर में स्वास्थ्य ही नहीं सभी सेवाएं चरमरा गई हैं। इन सब पर AIIMS केडायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने बताया, ''जो कोरोना पॉजिटिव आता है, उसमें यह पैनिक हो जाता है कि कहीं मुझे बाद में ऑक्सीजन और अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ जाए, इस वजह से मैं अभी ही भर्ती हो जाता हूं। इस वजह से अस्पतालों के बाहर बहुत भीड़ हो जाती है और वास्तविक मरीजों को इलाज नहीं मिल पाता है।'' उन्होंने यह भी बताया कि इसी पैनिक की वजह से घर पर पहले से ही दवाइयां शुरू कर देते हैं उस वजह से मार्केट में ड्रग्स की कमी हो जाती है। पहले ही दिन सभी दवाई शुरू करने की वजह से साइड इफेक्ट होने लगते हैं और कोई फायदा नहीं होता है।
अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के बीच गुलेरिया ने बताया कि कई लोग सोचते हैं कि अभी से ही ऑक्सीजन घर पर रख लेता हूं, जिससे आने वाले समय में कमी नहीं होगी। यह सब गलत धारणाएं हैं। ऑक्सीजन कोविड-19में बहुत जरूरी है, लेकिन इसका मिसयूज बहुत बड़ा फैक्टर है। गुलेरिया ने यह भी बताया कि हमें कोरोना के मामलों में कमी लानी होगी और अस्पतालों के रिसोर्सेज का बेहतर इस्तेमाल करना होगा। ऑक्सीजन का विवेकपूर्ण इस्तेमाल काफी जरूरी है।
गुलेरिया ने यह भी कहा किकोविड-19 एक सामान्य संक्रमण है। 85 से 90 फीसदी संक्रमितों में खांसी, जुकाम, बुखार और बदन दर्द जैसे मामूली लक्षण देखने को मिल रहे हैं। ऐसे मामलों में रेमडेसिविर जैसी दवाओं और ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती। डॉ. गुलेरिया ने कहा था, ''कोविड-19 को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है। लोग डर के मारे रेमडेसिविर के इंजेक्शन इकट्ठे करने लगे हैं। इससे रेमडेसिविर और ऑक्सीजन सिलिंडर की जमाखोरी शुरू हो गई है। नतीजतन हम इस जीवनरक्षक दवा और ऑक्सीजन की किल्लत का सामना कर रहे हैं।''गुलेरिया ने कहा कि 10 से 15 फीसदी मरीजों में संक्रमण गंभीर स्तर पर पहुंचता है। उन्हें रेमडेसिविर जैसी दवाओं, ऑक्सीजन या प्लाज्मा की आवश्यकता पड़ सकती है।