भारत को जल्द ही एक और वैक्सीन मिलने वाली है। इसे भारत की कंपनी जायडस कैडिला ने बनाई है। इस वैक्सीन ने भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) से आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मांगी है। ये वैक्सीन बच्चों के लिए काफी सुरक्षित बताई जा रही है। यह पहली पालस्मिड DNA वैक्सीन है। इसके साथ-साथ इसे बिना सुई की मदद से फार्माजेट तकनीक से लगाया जाएगा, जिससे साइड इफेक्ट के खतरे कम होंगे।
जायडस कैडिला की कोरोना वैक्सीन ZyCoV-D का तीसरे चरण का ट्रायल हो चुका है। इसमें 28 हजार प्रतिभागियों से हिस्सा लिया था। भारत में किसी वैक्सीन का यह अब तक का सबसे बड़ा ट्रायल है, इसके नतीजे भी संतोषजनक बताए गए हैं। दूसरी कोरोना लहर के दौरान ही देश की 50 क्लीनिकल साइट्स पर इसका ट्रायल हुआ था। इसे डेल्टा वैरिएंट पर भी असरदार बताया जाता है। स्टडी में पाया गया कि जायडस कैडिला की ZyCoV-D कोरोना वैक्सीन 12 से 18 साल के बच्चों के लिए सुरक्षित है। इसे फार्माजेट सुई रहित तकनीक की मदद से लगाया जाएगा। इसमें सुई की जरूरत नहीं पड़ती। बिना सुई वाले इंजेक्शन में दवा भरी जाती है, फिर उसे एक मशीन में लगाकर बांह पर लगाते हैं।
कंपनी ने सालाना 10-12 करोड़ खुराक बनाने की बात कही है। ZyCoV-D की कुल तीन खुराक लेनी होती हैं। माना जाता है कि सुई के इस्तेमाल के बिना तीनों खुराक लगाई जाती है, जिससे साइड इफेक्ट का खतरा कम होता है। Plasmid आधारित DNA वैक्सीन में एंटीजन-विशिष्ट इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम किया जाता है, जो इंफेक्शन से लड़ने में मदद करता है। Plasmid DNA वैक्सीन होने का सबसे बड़ा फायदा यही है कि इसे 2-8 डिग्री के तापमान में रखा जा सकता है। भारत की दूसरी कोरोना वैक्सीन कोवैक्सिन बायो-सेफ्टी लेवल 3 लैब में बनाया जा सकता है।
इसके फायदों की बात करें तो इस तरह के निर्माण से बी- और टी-सेल दोनों एक्टिव होते हैं, वैक्सीन बेहतर काम करती है, किसी भी संक्रामक एजेंट की अनुपस्थिति को पुख्ता करती है, साथ ही साथ इससे बड़े पैमाने पर उत्पादन में आसानी होती है। भारत में यह पहली वैक्सीन थी जिसका ट्रायल 12-18 साल के बच्चों पर हुआ था।