उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव को लेकर जारी की गई आरक्षण सूची पर रोक के खिलाफ हाईकोर्ट में सरकार अपना पक्ष रखेगी। आज उत्तर प्रदेश को लाखों-लाख लोगों की निगाह हाईकोर्ट के फैसले पर लगी होगी। ग्राम प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य के लिए चुनाव में उतरने वाले प्रत्याशियों के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। आरक्षण सूची के आधार पर चुनाव प्रचार भी तेजी के साथ शुरू हो चुका था, लेकिन रोक के बाद प्रचार थम गया। शुक्रवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन चुनावों के लिए आरक्षण प्रकिया पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने आरक्षण और आवंटन कार्रवाई रोक दी।
दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अजय कुमार नाम के एक याचिका की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने ग्राम पंचायत चुनावों की प्रक्रिया पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। इसी पर प्रदेश सरकार कोर्ट के सामने जवाब पेश करने वाली है।
ध्यान रहे,17मार्च को यूपी सरकार पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण की अंतिम सूची जारी करने वाली थी लेकिन हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब इस पर ब्रेक लग गया है।
अजय कुमार की याचिका में आरक्षण की नियमावली को चुनौती दी गई थी। पीआईएल में फरवरी महीने में जारी किए गए शासनादेश को चुनौती दी गई है। सीटों का आरक्षण साल 2015में हुए पिछले चुनाव के आधार पर किए जाने की मांग की गई है। पीआईएल में 1995से आगे के चुनावों को आधार बनाए जाने को गलत बताया गया है।
इससे पहले 17मार्च तक फाइनल आरक्षण लिस्ट आने के बाद 25-26मार्च तक पंचायत चुनावों की अधिसूचना जारी कर देने की संभावना जताई जा रही थी, पर अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद पंचायत चुनाव की तारीखें और लंबी खिंच सकती हैं। इससे पहले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के निर्देश पर जिलों में आरक्षण सूची जारी कर दी गई थी। इसके बाद कई जिलों से आपत्ति आने के बाद अब सभी आपत्तियों के निस्तारण का काम गति पकड़ चुका था। साल 2015में 59हजार 74ग्राम पंचायतें थीं, वहीं इस बार इनकी संख्या घटकर 58हजार 194रह गई है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को पत्र भेजा है। पत्र के माध्यम से उन्होंने अदालत के आदेश का हवाला देते हुए शासन के अग्रिम आदेशों तक पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण व आवंटन की कार्यवाही को अंतिम रूप न देने को कहा है।