पश्चिम बंगाल में एक बार फिर से ममता बनर्जी की पार्टी सत्ता में आती दिख रही है। इस जीत के साथ बी TMC बंगाल में जीत की हैट्रिक लगा देगी। अभी तक के आए नतीजों में ममता दीदी की पार्टी 200 के पार जाती दिख रही है। वहीं बीजेपी 90 सीटों से भी नीचे सिमटती दिख रही है। रुझानों में 84 सीटों पर ही आगे चल रही है। नंदीग्राम सीट से भी सुबह से पीछे चल रही ममता बनर्जी अब शुभेंदु अधिकारी से आगे चल रही है।
भाजपा ने बंगाल के चुनाव में अपनी पुरी ताकत झोंक दी। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कई चुनावी रैलियां की। कई केंद्रीय मंत्रियों ने वहां डेरा डाला, लेकिन नतीजे भाजपा के लिए निरासा लेकर आई है। भले ही 2016 के मुकाबले बीजेपी ने 30 गुना बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन सरकार बनाने की उम्मीद पालने वाली पार्टी के लिए यह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। बीजेपी की इस हार के कई कारण हो सकते हैं पर ये पांच वजहें अहम हैं।
मजबूत स्थानीय नेता की कमी
बीजेपी ने भले ही बंगाल में पीएम नरेंद्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह समेत केंद्रीय मंत्रियों की बड़ी फौज को चुनावी समर में उतारा था, लेकिन नतीजों में इसका ज्यादा असर नहीं दिख रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राज्य में कोई मजबूत चेहरा न होने के चलते यह स्थिति पैदा हुई है। दरअसल जनता के दिमाग में यह बात थी कि पीएम नरेंद्र मोदी बंगाल के सीएम नहीं बनने वाले। पार्टी की ओर से सूबे में सीएम के लिए किसी चेहरे का भी ऐलान नहीं किया गया था। माना जा रहा है कि ममता के मुकाबले एक मजबूत चेहरे का अभाव बीजेपी को खला है।
लेफ्ट के सफाये से टीएमसी को मिली बढ़त
बीजेपी ने भले ही मुकाबले को पूरी तरह से द्विपक्षीय ही बना दिया, लेकिन यही समीकरण उसके लिए भारी पड़ा है। दरअसल लेफ्ट और कांग्रेस के सफाये से साफ है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुआ वोट टीएमसी को ही गया है। खासतौर पर मुस्लिम समुदाय की ओर से एकजुट होकर टीएमसी को वोट गया है। यही समीकरण बीजेपी पर भारी पड़ता दिख रहा है। इसके उदाहरण के तौर पर हम देख सकते हैं कि कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले मालदा में तृणमूल कांग्रेस ने क्लीन स्वीप किया है।
कोरोना की दूसरी लहर का बीजेपी पर ज्यादा कहर
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के कहर के चलते चुनाव प्रचार प्रभावित होने का नुकसान बीजेपी को हुआ है। हालांकि ये प्रेसिडेंसी वाले इलाके थे, जहां आखिरी के तीन राउंड्स में चुनाव था। इन इलाकों में ममता बनर्जी का गढ़ माना जाता रहा है। प्रेसिडेंसी में हावड़ा, हुगली, नार्थ और साउथ परगना और कोलकाता जैसे इलाके आते हैं। इनमें और मालदा रीजन में टीएमसी ने बढ़त कायम कर सफलता हासिल की है।
एकजुट रहा टीएमसी का वोटर, लेफ्ट में बीजेपी की सेंध
अब तक मिले रुझानों से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी ने लेफ्ट-कांग्रेस के वोटों में बड़ी सेंध लगाकर सफलता हासिल की है। 2019 के आम चुनाव में 18 लोकसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी ने अपनी उसी सफलता को दोहराया है, लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने से चूक गई है। इससे साफ है कि उसने लेफ्ट और कांग्रेस के वोटों में तो सेंध लगाई है, लेकिन टीएमसी का वोटर उससे जुड़ा रहा है। यही नहीं बीजेपी विरोधी वोट भी उसे एकमुश्त मिला है।
ध्रुवीकरण के मुद्दों का नहीं दिखा असर
बंगाल में 'जय श्री राम' के नारे को चुनावी मुद्दा बनाकर उतरी बीजेपी को ध्रुवीकरण की बड़ी उम्मीद थी, लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा है। बंगाल में बीजेपी के 100 सीटों से कम पर रहने से साफ है कि उसे लेफ्ट और कांग्रेस के बिखरे जनाधार से मदद मिली है, लेकिन ध्रुवीकरण नहीं हो सका है। इसके चलते टीएमसी अपनी स्थिति को बरकरार रखने में कामयाब रही है।