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भोपाल गैस त्रासदी : उस रात को याद कर आज भी सिहर उठते हैं गैस पीड़ित

भोपाल गैस त्रासदी : उस रात को याद कर आज भी सिहर उठते हैं गैस पीड़ित

भोपाल में 2 दिसंबर 1984 की रात हर सामान्य रात की तरह ही शुरू हुई थी। इस दिन 1984 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आ रहे थे। उस समय सभी घरों में टेलीविजन सेट नहीं हुआ करते थे। लोग पड़ोसियों के साथ टीवी देखते थे। उस रात चुनावी नतीजों को जानने के लिए वे सभी लोग भी टीवी देखने अपने पड़ोस में गए थे, जो अमूमन ऐसा नहीं करते थे। लेकिन उन बदनसीबों को क्या पता था कि इनमें से कई लोगों के साथ यह उनकी आखिरी मुलाकात है।

पुराने भोपाल के इब्राहिम-गंज मुहल्ले में उस समय रहने वाली 76 वर्षीय विमला चतुर्वेदी को 2-3 दिसंबर की उस रात में हुए भोपाल गैस कांड का खौफनाक हादसा आज भी किसी फिल्म की तरह याद है। विमला चतुर्वेदी का परिवार उस रात को करीब 11 बजे सोने चला गया। रात 1.15 बजे उनके किराएदार ने जगाया और कहा कि गैस लीक हो गया है। सभी लोग यहां से दूर भाग रहे हैं। आप लोग  भी यहां से निकलो। पति और बच्चों के साथ जब विमला देवी घर से बाहर निकलीं तो नजारा देखकर सन्न हो गईं।

केवल 100 मीटर की दूरी तय करने के बीच विमला चतुर्वेदी का परिवार बिछड़ गया। उनके केवल दो छोटे बेटे उनकी गोद मे रह गए। लोग बेतहासा खांस रहे थे। आंखों में जलन हो रही थी और लोग अंधाधुंध जिधर राह दिखे, भाग रहे थे। उनके मुहल्ले से जेपीनगर के सामने छोला रोड पर स्थित यूनियन कार्बाइड की केमिकल फैक्ट्री रोजाना की तरह खड़ी थी। लेकिन आज इस फैक्ट्री से रिसकर निकली मिथाइल आइसो साइनेट गैस भोपाल के हजारों लोगों के लिए साक्षात काल बन गई थी। जो लोग थोड़ा किस्मत वाले थे, वे तो बच गए। फिर भी उनमें से हजारों लोगों की जिंदगी आगे चलकर रोगों का घर बन गई।

एक मुसलमान ट्रांसपोर्टर अपनी ट्रक में लोगों को भरकर शहर से बाहर ले जा रहे थे। विमला चतुर्वेदी को भी अपने बच्चों के साथ उस ट्रक में जगह मिल गई। भोपाल से मंडीदीप पहुंचने में भोर हो गई। वहां ग्रामीणों ने उन सभी को पानी पिलाया। सुबह सूचना मिली कि गैस का असर खत्म हो गया है। लोगों के साथ फिर उसी ट्रक से विमला चतुर्वेदी अपने घर पहुंची। उनके परिवार के बाकी सदस्य भी धीरे-धीरे दोपहर तक घर लौट आए। विमला चतुर्वेदी इस मायने में खुशकिस्मत रहीं कि उनके परिवार के किसी सदस्य की मौत नहीं हुई। जबकि कई लोगों के तो परिवारों का सफाया तक हो गया। उनके पड़ोसी के 6 सदस्यों के परिवार में केवल 1 लड़की जीवित बची थी।
<h2>गैस पीड़ितों को कई स्वास्थ्य समस्याएं</h2>
जो लोग जीवित बचे थे, उनको भी अपनी आगे की जिंदगी में <a href="https://hindi.indianarrative.com/india/bhopal-gas-tragedy-36th-anniversary-gas-leaked-in-union-carbide-india-limited-in-1984-19866.html">कई स्वास्थ्य समस्याओं</a> का सामना करना पड़ा। फेफड़े की समस्या के कारण हजारों लोगों को टीबी हो गई। आंखों की रोशनी को लेकर समस्या सबसे ज्यादा देखी गई। रवींद्र शुक्ल (60 वर्ष) उस समय चांद बड़ स्थित <strong>NTC </strong>की मिल कालोनी में रहते थे। गैस के संपर्क में आने से उनके दोनों फेफड़े खराब हो गए और वे  टीबी के मरीज हो गए। करीब 15 साल बाद उनका वेल्लोर के सीएमसी (Christian Medical College) में एक फेफड़े का प्रत्यारोपड़ कराया गया।

विमला चतुर्वेदी और रवींद्र शुक्ल की तरह भोपाल के हजारों लोग किस्मतवाले नहीं थे। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से तो भोपाल गैस कांड में 2200-2300 लोगों की ही मौत हुई थी। जबकि गैर-सरकारी आंकड़ों के अनुसार मरने वालों की संख्या 10 हजार से ज्यादा थी। भोपाल गैस हादसे के गवाहों का कहना है कि ट्रकों में भरकर लाशों को भोपाल शहर से दूर ले जाकर दफना दिया गया। हालांकि <a href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%97%E0%A5%88%E0%A4%B8_%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1">भोपाल गैस कांड</a> के बाद राहत के नाम पर सरकार से लेकर स्वयंसेवी संगठनों ने काफी मदद की। कई अस्पताल खोले गए और गैस पीड़ितों का इलाज भी हुआ। इसके बावजूद भोपाल के गैस पीड़ितों के जख्म अभी भरे नहीं हैं।.