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Bijapur Naxal Encounter: कोबरा जवान राकेश्वर की रिहाई के बदले धूर्त नक्सलियों ने कितनी भारी कीमत वसूली, देखें रिपोर्ट

राकेश्वर सिंह की रिहाई के बदले छोड़ा गया कुंजम सुक्का कौन है?

नक्सलियों के चंगुल से राकेश्वर सिंह को छुड़ाने के लिए सुरक्षाबलों को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। लगभग दो दर्जन जवानों की शहादत के बाद एक ऐसे नक्सली को भी रिहा करना पड़ा है जो सुरक्षा बलों को 40 लाख के ईनामी हिडमा और सुजाता तक पहुंचा सकता था। ऐसा बताया जाता है कि इस मुठभेड़ के दौरान कुंजम सुकमा नाम के एक संदिग्ध को सुरक्षा बलों ने पकड़ लिया था। कुंजम सुकमा का पकड़ा जाना छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता था। लेकिन बड़ी चालाकी से नक्सलियों ने कोबरा कमाण्डो राकेश्वर सिंह को बंदी बना लिया और सौदेबाजी शुरू कर दी।

नक्सलियों ने सरकार के साथ जान के बदले जान की डील की थी। नक्सलियों से बातचीत के लिए गई टीम में शामिल पत्रकारों ने बताया कि सुरक्षाबलों ने कुंजम सुक्का नाम के आदिवासी को अपने कब्जे में रखा था। नक्सलियों ने सरकार से मांग रखी थी कि निष्पक्ष मध्यस्थों के साथ कुंजम सुक्का को भेजें तो वे जवान को छोड़ देंगे। नक्सलियों से बातचीत के लिए गए पत्रकारों ने बताया कि जिस जगह पर राकेश्वर सिंह को छोड़ा गया, वहां 20गांवों के दो हजार से ज्यादा लोग जमा थे। नक्सली ग्रामीणों के साथ पत्रकारों और मध्यस्थों पर कड़ी निगरानी रख रहे थे। मध्यस्थ जब वहां पहुंचे तो जवान को उनके सामने नहीं लाया गया। नक्सलियों ने पहले माहौल को भांपा। आश्वस्त होने के बाद उन्होंने जंगल की तरफ इशारा किया। इसके बाद 35से 40हथियारबंद नक्सलियों के साथ राकेश्वर लोगों के बीच आए।

जवान को लाने के बाद नक्सलियों ने पत्रकारों को मोबाइल का कैमरा ऑन नहीं करने की सख्त हिदायत दी। उन्होंने पूरे इलाके को घेर रखा था। कुछ हथियारबंद नक्सली जवान को घेर कर खड़े थे। कुछ अन्य नक्सली मध्यस्थता टीम के सदस्यों की निगरानी कर रही थी। इस दौरान नक्सलियों की कमान एक महिला नक्सली के हाथों में थी। इसी महिला नक्सली ने मध्यस्थों को आश्वस्त किया कि रास्ते में उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। जब जवान को छोड़ा जाने लगा, तभी नक्सलियों ने पत्रकारों को वीडियो बनाने की अनुमति दी।

बीजापुर के एसपी ने बताया कि मध्यस्थों की टीम और पत्रकार सुबह 5 बजे बीजापुर से निकले थे। नक्सलियों ने उन्हें बीजापुर जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर जोनागुड़ा आने के लिए कहा था। उबड़-खाबड़ रास्तों से होते टीम दोपहर में जोनागुड़ा पहुंची। यहां पहुंचने के बाद उन्हें जंगल के अंदर करीब 15 किलोमीटर ले जाया गया। शाम के करीब 5 बजे टीम राकेश्वर को लेकर तर्रेम थाना पहुंची। इसके बाद उन्हें सुरक्षाबलों के हवाले किया गया। इससे पहले मध्यस्थों ने कुंजम सुक्का को नक्सलियों के हवाले किया।

यहां खास बात यह है कि नक्सलियों ने जंगल में रहने वाले आदिवासियों के सामने अपना चेहरा बेहद उदार और दयालु संगठन का सामने रखा। जबकि सरकार और सुरक्षा बलों को अत्याचारी की शक्ल में पेश किया। जंगलों में रहने वाले आदिवासी अखबार नहीं पढते हैं, वो नक्सलियों की तरह चालाक धूर्त भी नहीं है। नक्सली एक बार फिर जंगल से बाहर के लोगों खास-कर सरकार और सुरक्षाबलों को दुश्मन की तरह पेश कर दिया।