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Bijapur Naxal Encounter: कोबरा कमाण्डो राकेश्वर की रिहाई के लिए छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने नक्सलियों के आगे टेक दिए घुटने?

नक्सलियों की कैद से रिहा कोबरा कमांडो राकेश्वर

छत्तीसगढ़ में तैनात सुरक्षाबल, तर्रेम के जंगलों में आस-पास के सैंकड़ों गांव वालों और राकेश्वर सिंह के घर वालों के लिए राहत की बात है कि राकेश्वर सिंह सकुशल वापस आ गए। नक्सलियों ने उन्हें बिना शर्त, बिना कोई नुकसान पहुंचाए रिहा कर दिया। लेकिन इस रिहाई ने कई सवाल भी छोड़ दिए हैं। जिनपर गौर किया जाना जरूरी है। पहला सवाल यह कि सरकारी बल और नक्सलियों को जन-धन की भारी हानि के बाद ऐसा क्या हो गया कि नक्सली राकेश्वर को बिना शर्त छोड़ने पर रिहा हो गए।

दूसरा सवाल यह कि जब नक्सली वार्ता की टेबल पर बैठने को तैयार थे तो फिर खूनी संघर्ष की नौबत क्यों आई? तीसरा सवाल यह कि राकेश्वर को रिहा करने वाले नक्सली जंगलों में सुरक्षाबलों को डेरा डालने देंगे या सरकार ने जंगलों को जनताना सरकार के हवाले कर दिया है?

इन सबसे बड़ा सवाल, क्या नक्सलियों ने राकेश्वर के साथ सुरक्षाबलों से लूटे गए हथियार भी वापस कर दिए या नहीं और चालीस लाख के ईनामी नक्सली हिडमा और सुजाता कहां हैं?  एक और आशंका, क्या हिडमा-सुजाता की आड़ में कोई दूसरा है जिसने छत्तीसगढ़ के जंगलों में छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार के समानांतर जनताना सरकार बना ली है?

बीजापुर-सुकमा के जंगलों में हफ्ते भर पहले हुई मुठभेड़ के बाद यह तो साफ है कि नक्सलियों के खिलाफ शुरू किए गए अभियान की तैयारी आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर किया गया। जिसका नतीजा बेहद भयानक साबित हुआ। यह भी साफ हो जाता है कि नक्सली समस्या को लेकर सरकार और सुरक्षाबलों के शीर्ष पर बैठे लोगों की रणनीति बेहद दोष पूर्ण है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शायद ही इस मुठभेड़ की असफलता और दो दर्जन सुरक्षाकर्मियों की शहादत के कारणों के जांच करवाएंगे, क्यों कि ऐसा हो गया तो बहुत सारे लोग ‘नंगे’ हो सकते हैं।

बहरहाल, 3 अप्रैल को कथित तौर पर सुरक्षा बलों को जानकारी मिली थी कि 40 लाख का ईनामी नक्सली हिडमा बीजापुर के जंगलों में छिपा हुआ है। हिडमा को पकड़ने के लिए 2000 जवानों को सात टोलियों में बांटकर अलग-अलग दिशा से जंगलों में सुरक्षा बल घुसे थे। इन्हीं में से एक टोली को हिडमा के 800 नक्सलियों ने घेर लिया। आमने-सामने हुई गोलीबारी में दो दर्जन सुरक्षाकर्मी मारे गए और 30 से ज्यादा जख्मी हैं। इनमें से एक राकेश्वर को नक्सलियों अगवा कर लिया था। जिसको छह दिन बाद वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री धर्मपाल सैनी के कहने पर नक्सलियों ने बिना शर्त रिहा कर दिया।