कोरोना वायरस डेल्टा वेरिएंट दुनिया के कई देशों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। इसको लेकर तमाम रिसर्च जारी है। हाल ही में एक रिसर्च में सामने आया है कि कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी 16% लोगों में डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ कोई एंटीबॉडी नहीं मिली है। इस आंकड़े को लेकर लोग ये मानकर चल रहे है कि डेल्टा वेरिएंट पर कोविशील्ड बेअसर है। लेकिन यहां हम आपको बता दें कि इसको लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की रिसर्च जारी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोविशील्ड डेल्टा वेरिएंट का खात्मा करने के लिए सक्षम है।
आईसीएमआर को स्टडी से पता चला है कोविशील्ड वैक्सीन की दोनों डोज लेने वालों में डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं बनी है। जानकारी के मुताबिक, 16 फीसदी लोग ऐसे हैं जिनमें कोविशील्ड की दो डोज लेने के बाद कोई एंटीबॉडी डेवलप नहीं हुई। आपको बता दें कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों पर किए गए अध्ययन की अभी समीक्षा की जानी बाकी है। इस वैक्सीन का विकास ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और ब्रिटेन-स्वीडन की कंपनी एस्ट्राजेनेका ने किया है और इसका निर्माण पुणे की कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कर रही है।
रिसर्च में एंटीबॉडी के नहीं दिखने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि ये मौजूद नहीं है। दरअसल एंटीबॉडी को बेअसर करने का स्तर काफी कम हो सकता है और इसी वजह से इसका पता नहीं चला, लेकिन शरीर में यह अभी भी हो सकता है और संक्रमण व गंभीर बीमारी से व्यक्ति को बचा सकता है। आईसीएमआर के एक एक्सपर्ट ने कहा है कि अगर कोविड गाइडलाइन्स का पालन नहीं किया जाता है, तो कोरोना वायरस की तीसरी लहर अक्तूबर-नवंबर के बीच चरम पर पहुंच सकती है। लेकिन, इस दौरान दूसरी लहर के दौरान दर्ज किए गए दैनिक मामलों के आधे मामले देखने को मिल सकते हैं।