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कोविशील्ड या कोवैक्सिन कौन ज्यादा बना रही एंटीबॉडी ? जानें क्या है दोनों में अंतर

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कोरोना वायरस के खिलाफ इस लड़ाई में सबसे बड़ा हथियार है वैक्सीन। देशभर में टीकाकरण का अभियान तेज है। लोगों को कोविशील्ड और कोवैक्सिन की डोज दी जा रही है। ऐसे में लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे है कि कौन-सी वैक्सीन लगवाएं ?, किस वैक्सीन को लगवाने से कोरोना संक्रमण का खतरा खत्म हो जाएगा ? कौन सी वैक्सीन का साइड इफेक्ट सबसे कम है ? कौन सी वैक्सीन लगवाने से एंडीबॉडी तेजी से और अधिक बनने लगते है?  आज इस रिपोर्ट में आप इन सब सवालों का जवाब मिलेगा।

वैक्सीन को लेकर भारत में हुई एक रिसर्च में दावा किया गया है कि कोवैक्सिन की तुलना में कोविशील्ड अधिक एंटीबॉडी विकसित करती है। ये रिसर्च कोरोनावायरस वैक्सीन-इंड्यूस्ड एंडीबॉडी टाइट्रे की ओर से की गई। इस रिसर्च में उन डॉक्टर्स और नर्सों को शामिल किया गया जिन्होंने कोविशील्ड और कोवैक्सिन में से किसी एक वैक्सीन की दोनों खुराकें ली है। रिसर्च में दावा किया गया कि कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में सीरोपॉजिटिविटी रेट से लेकर एंटी-स्पाइक एंटीबॉडी कोवैक्सीन की पहली डोज लगवाने वाले लोगों की तुलना में काफी अधिक थे।

रिसर्च में कहा गया कि एंडी कोरोनावायरस दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों का रेस्पॉन्स अच्छा है। लेकिन सीरोपॉजिटिवी रेट और एंटी स्पाइक एंटीबॉडी कोविशील्ड में अधिक है। सर्वे में शामिल 456 हेल्थकेयर वर्कर्स को कोविशील्ड और 96 को कोवैक्सीन की पहली डोज दी गई थी। पहली डोज के बाद ओवरऑल सीरोपॉजिटिविटी रेट 79.3% रहा। दोनों वैक्सीन लगवा चुके हेल्थकेयर वर्कर्स में इम्यून रिस्पॉन्स अच्छा था।

क्या अंतर है कोवैक्सीन और कोविशील्ड में, जानिए…

कोवैक्सीन को भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर डेवलप किया है। कोवैक्सीन इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है, जो बीमारी पैदा करने वाले वायरस को निष्क्रिय करके बनाई गई है। कोवैक्सीन B.1.617 वेरिएंट यानी भारत के डबल म्यूटेंट वेरिएंट को बेअसर करने में कारगर है। वहीं, कोविशील्ड चिम्पैंजी एडेनोवायरस वेक्टर पर आधारित वैक्सीन है। इसमें चिम्पैंजी को संक्रमित करने वाले वायरस को आनुवांशिक तौर पर संशोधित किया गया है ताकि ये इंसानों में ना फैल सके।

कोवैक्सीन और कोविशील्ड एक दूसरे से एकदम अलग है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका द्वारा डेवलप कोविशील्ड के इस वैक्सीन को कई और भी देशों में इस्तेमाल किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि ये वैक्सीन कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी जेनरेट करने का काम करती है। हालांकि इन दोनों ही वैक्सीन की खूबियां इन्हें एक दूसरे से अलग करती है।

एंटीबॉडी क्या होती है?– एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। कोरोना वायरस का संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है। जब कोई व्यक्ति कोरोनावायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं। ये वायरस से लड़ते हैं। ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आमतौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं। ठीक होने के दो हफ्ते के अंदर ही एंटीबॉडी बन जाता है।