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एक मुसलमान ऐसा भी: बेजुबानों की हत्या रोकने के लिए खाना-पीना छोड़ा, बकरीद पर रखा 72 घंटे का रोजा

बेजुबानों की हत्या रोकने लिए 72 घंटे के लिए छोड़ा खाना-पीना छोड़ा

आज देशभर में ईद उल अजहा यानी बकरीद का मनाया जा रहा है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बरके की कुर्बानी देते हैं। मगर एक शख्स ऐसा भी है जो इसके खिलाफ है। ये शख्स जानवरों के साथ हो रही बर्बरता के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहा है। दरअसल, कोलकाता के 33 वर्षीय अल्ताब हुसैन ने ईद पर जानवरों की कुर्बानी के विरोध में मंगलवार की रात से 72 घंटे का रोजा रखा है। बकरीद के अवसर पर जब अल्ताब के भाई एक बकरे को कुर्बानी देने के लिए घर ले आए तो वह दुखी हो गए। 

अल्ताब हुसैन का कहना है कि पहले मैं भी पशुओं की कुर्बानी में भाग लेता था। लेकिन जब मैंने एक वीडियो में देखा कि कैसे गायों को पीठ पर लाठी से मारा जाता है, जिस तरह से उन्हें दूध देने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं, कैसे गायों से बछड़ों को अलग करके बूचड़खाने भेजा जाता है, मुझे लगा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। यह डेयरी उद्योग से शुरू हुआ और पशु बलि के मुद्दे पर चला गया।

अल्ताब हुसैन मांस, मछली, शहद या चमड़े के किसी भी उत्पादों का उपयोग नहीं करते। हालांकि, उनका परिवार हुसैन का समर्थन नहीं करता और वह मानते हैं कि  ईद पर कुर्बानी जरूरी है। हुसैन को जानवरों के प्रति प्रेम दिखाने की सजा यह हुई कि उन्हें धमकियां मिलने लगीं। 

अल्ताब हुसैन का कहना है कि पशुओं के प्रति काफी क्रूरता हो रही है। उनका कहना है कि कोई इसका विरोध भी नहीं करता। मैंने लोगों को यह एहसास दिलाने के लिए कि पशु बलि जरूरी नहीं है, 72 घंटे का उपवास यानी रोजा रखने का फैसला किया है। इसके पहले हुसैन ने 2014 में पशु अधिकारों के लिए प्रचार करना शुरू किया, जब उन्होंने डेयरी उद्योग में पशुओं के प्रति क्रुरता पर एक वीडियो देखा। उसके बाद से ही उन्होंने मांस खाना छोड़ दिया और शाकाहारी बन गए। इतना ही नहीं, उन्होंने चमड़े के उत्पादों का उपयोग करना भी बंद कर दिया है।