विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह साफ तौर पर कहा है कि जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव जारी है तब तक चीन के साथ किसी दूसरे क्षेत्र में सहयोग करने के बारे में नहीं सोचा जा सकता। पूर्वी लद्दाख पर तनाव का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के संबंध चौराहे पर हैं और इसकी दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि क्या पड़ोशी देश सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए विभिन्न समझौतों का पालन करता है। उन्होंने आगे कहा कि 1962 के संघर्ष के 26 साल बाद 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए थे ताकि सीमा पर स्थिरता को लेरक सहमति बन सके। और इसके बाद 1992 और 1996 में सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए दो महत्वपूर्ण समझौते हुए।
अपने एर इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह भी कहा कि लद्दाख सेक्टर में फ्रिक्शन पॉइंट्स पर भारतीय और चीनी सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया अब भी बीच में रुकी हुई है और सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और शांति की पूर्ण बहाली से ही द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति होगी। विदेश मंत्री ने कहा कि सीमा पर स्थिरता के मद्देनजर कई क्षेत्रों में संबंधों में विस्तार हुआ, लेकिन पूर्वी लद्दाख की घटना ने इस पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
वहीं, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि क्षेत्र में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया जल्द पूरी होनी चाहिए और सीमावर्ती इलाकों में पूर्ण रूप से शांति बहाली से ही द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है।
विदेश मंत्री ने कहा, मैं समझता हूं कि संबंध चौराहे पर हैं और इसकी दिशा इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या चीनी पक्ष सहमति का पालन करता है, क्या वह हमारे बीच हुए समझौतों का पालन करता है। पिछले साल से ये साफ हो गया कि अन्य क्षेत्रों में सहयोग, सीमा पर तनाव के साथ जारी नहीं रह सकता है। चीन द्वारा क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने और दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, भारत प्रतिस्पर्धा करने को तैयार है और हमारी अंतर्निहित ताकत और प्रभाव है, जो हिन्द प्रशांत से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक है। प्रतिस्पर्धा करना एक बात है, लेकिन सीमा पर हिंसा करना दूसरी बात है।
विदेश मंत्री ने कहा, मैं प्रतिस्पर्धा करने को तैयार हूं। ये मेरे लिए मुद्दा नहीं है। मेरे लिए मुद्दा ये है कि मैं संबंधों को किस आधार पर व्यवस्थित रखूं जब एक पक्ष इसका उल्लंघन कर रहा है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध 1980 और 1990 के दौरान सीमा पर स्थिरता के आधार पर संचालित रहे।
विदेश मंत्री ने कहा, मेरे पास इस समय कोई स्पष्ट जवाब नहीं है, लेकिन 1962 के संघर्ष के 26 साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन गए थे। 1988 में एक तरह की सहमति बनी जिससे सीमा पर स्थिरता कायम हुई। इसके बाद 1993 और 1996 में सीमा पर शांति बनाये रखने के लिये दो महत्वपूर्ण समझौते हुए। इन समझौतों में यह कहा गया था कि आप सीमा पर बड़ी सेना नहीं लाएंगे और वास्तविक नियंत्रण रेखा का सम्मान किया जाएगा और इसे बदलने का प्रयास नहीं होगा, लेकिन पिछले साल चीन वास्तव में 1988 की सहमति से पीछे हट गया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि, अगर सीमा पर शांति और स्थिरता नहीं होगी तब निश्चित तौर पर इसका संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा।