प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर और गुजरात का कसाई और मुसलमानों का कातिल कहने वालों की जुबान पर सुप्रीम कोर्ट ने ताला जड़ दिया है। भले ही इसका माध्यम जाकिया जाफरी की याचिका बनी हो, लेकिन फैसले की एक लाइन लिखकर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि गोधरा स्टेशन पर अयोध्या से लौट रही साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन को आग के हवाले करने और निर्दोष कारसेवकों की नृशंस हत्या के बाद उपजी बदले की हिंसा में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई हाथ नहीं था। इस हिंसा में गोधरा काण्ड के बाद हुई हिंसा में हिंदू और मुसलमान दोनों मारे गए थे, लेकिन मुसलमानों की संख्या कुछ ज्यादा थी।
गोधरा काण्ड के बाद गुजरात में हुई हिंसा की जांच के लिए एसआईटी बनाई गई थी। एसआईटी ने नरेंद्र मोदी समेत 64 लोगों को क्लीन चिट दे दी। एसआईटी के जांच निष्कर्ष को जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी।जाकिया जाफरी की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने यह भी समझाया कि प्रशासन की किसी खामी या सही समय पर उचित कार्रवाई नहीं कर पाने को साजिश से नहीं जोड़ा जा सकता है। कोर्ट ने अपनी बात समझाने के लिए कोरोना महामारी का भी उदाहरण दिया।
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल की दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य प्रशासन की असफलता या निष्क्रियता के आधार पर साजिश की बात नहीं कही जा सकती है। कोर्ट ने आगे कहा, ''राज्य प्रशासन के कुछ अधिकारियों की असफलता या निष्क्रियता आपराधिक साजिश का आधार नहीं हो सकता है या यह नहीं कहा जा सकता है कि यह अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ राज्य प्रयोजित अपराध (हिंसा) है।'
बेंच ने मामले को बंद करने संबंधी 2012में सौंपी गई एसआईटी की रिपोर्ट के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करने के विशेष मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि जाफरी की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। जकिया ने 2002के गुजरात दंगों में एक बड़ी साजिश का आरोप लगाया था।
27 फरवरी 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 अयोध्या से लौट रहे निर्दोष हिंदू कारसेवकमारे गए थे। इस घटना के बाद ही गुजरात में दंगे भड़क गए थे। 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में मारे गए 68 लोगों में कांग्रेस नेता एहसान जाफरी शामिल थे। इस मामले की जांच के लिए बनी एसआईटी की रिपोर्ट के खिलाफ अक्टूबर 2017 में एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया ने इस रिपोर्ट के खिलाफ याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर 2019 को इस पर अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। जिसे 24 जून 2022 को सुनाया और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (अब प्रधानमंत्री) को क्लीन चिट को सही बताया।