मालद्वीप-थाईलैण्ड, म्यांमार, श्रीलंका और बांगलादेश जैसे देशों को चीन के मकड़जाल से बचाने के लिए भारत और जापान ने इन देशों की विकास परियोजनाओं में साथ-साथ काम करने का ऐलान किया है। भारत और जापान श्रीलंका में इस का प्रयोग कर चुके हैं। बांगलादेश में रूस के साथ भारत ने कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में साथ-साथ काम किया। इसका लाभ तीनों देशों को मिला है। भारत ने श्रीलंका और बांग्लादेश के अपने अनुभवों को जापान के साथ साझा किया और उन्हें बाकी देशों में बढाने का फैसला किया। भारत और जापान के इस प्रयास से दुनिया में न केवल चीन के खतरनाक प्रभाव को रोका जा सकेगा बल्कि दुनिया के विकास के नये रास्ते भी खोलेगा। दरअसल, चीन के धंदे और कर्ज के फंदे से कमजोर देशों को बचाने के लिए भारत और जापान ने जो जुगलंबदी की है उसके अच्छे परिणाम मिल रहे हैं और भविष्य भी अच्छा दिखाई दे रहा है। इसलिए भारत ने रूस के सुदूर पूर्वी इलाकों में भी ऐसी संयुक्त विकास परियोजनाओं का खाका तैयार किया है।
<h3><span style="color: #ff9900;">कमजोर देशों की भारत और जापान मिलकर करेंगे मदद</span></h3>
रूस के सुदूरवर्ती पूर्वी इलाकों पर चीन की कुदृष्टि लगी हुई है। रूस इस बात को अच्छी तरह जानता और चीन की चालों को समझता भी है। इसीलिए पिछले वर्ष रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया था। भारत और जापान अफ्रीकी देशों को चीन के मकड़ जाल से बचाने की परियोजना पर भी काम कर रहे हैं। भारत और जापान को इस परियोजना में अमेरिका जैसे देशों का सहयोग मिलने के आसार हैं। अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव हैं। इसलिए बहुत सारे नीतिगत फैसले फरवरी के बाद ही लिए जा सकेंगे।
<h3><span style="color: #ff9900;">मकसद कमजोर देशों को चीन के मकड़जाल से निकालना</span></h3>
यदि राष्ट्रपति ट्रंप दोबारा चुनाव जीतते हैं तो संभावना है कि अफ्रीकी देशों में यह परियोजना इस साल के अंत तक शुरू हो सकती हैं। भारत के पास मैनपॉपर और मशीन पॉवर दोनों हैं। जापान के पास उन्नत टेक्नोलॉजी है अमेरिका इसमें मनी पॉवर का योगदान कर चीन के कर्जवाले मकड़जाल में फंसे देशों को उबार सकता है। भारत-जापान और अमेरिका के थिंक टैंक के बीच इस मसले पर जो विचार-विमर्श हुआ है उसके अनुसार चीन के मकड़जाल में फंसे देशों को तब तक मदद दी जायेगी जब तक वो आत्मनिर्भर न बन जायें। इस परियोजना का लाभ यह रहेगा कि कमजोर देश किसी एक खास विचारधारा वाले देश के गुलाम भी नहीं बनेंगे और परस्पर सहयोग की भाववना बढ़ेगी। दुनिया में 'युद्ध' जैसे हालात बनने की आशंका भी कम रहेगी।
<h3><span style="color: #ff9900;">एक और एक ग्यारह नहीं एक और मिलाकर सौ ग्यारह बनेंगे</span></h3>
भारत-जापान और अमेरिकी की इस योजना को एक और ग्यारह ही नहीं बल्कि तीन इक्कों को इकट्ठा कर एकसौ ग्याह बनाने की है। इस परियोजना के विस्तार में उन देशों को जोड़ा जाएगा जो खुद आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते हुए अन्य कमजोर देशों की मदद और सहयोग करेंगे। इस परियोजना के बारे में जानकारों का कहना है कि भारत और जापान सबसे पहले क्वाड कंट्रीज फिर एशियाई देशों और अफ्रीकी देशों को इसमें जोड़कर आगे बढेंगे।
<h3><span style="color: #ff9900;">आगे चलकर चीन को भी शामिल करने पर हो सकता है विचार </span></h3>
भारत ने इस परियोजना में चीन को भी जोड़ने के संकेत दिए हैं लेकिन उसी शर्त पर कि एकाधिकार या कमजोर देशों की जमीनों और संपत्तियों को हड़पने की मंशा छोड़नी होगी। इसके अलावा विस्तारवाद की नीति को तिलांजलि देनी होगी। इसी सिलसिले में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों (भारत और जापान) ने तीसरे देशों में काम करने के व्यावहारिक पहलुओं पर काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, 'हमने श्रीलंका में कुछ ऐसा ही किया है। जयशंकर ने कहा कि भारत और जापान ने हाल ही में सैन्य सहयोग को लेकर एक समझौते पर दस्तखत किया है जो हिंद और प्रशांत महासागर को लेकर दोनों देशों की सोच को दर्शाता है। इस समझौते से एशिया में सुरक्षा और स्थिरता को मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा कि एशिया के बड़े और महत्वपूर्ण देशों को एकजुट हो जाना चाहिए क्योंकि एक-दूसरे के प्रति सशंकित रहकर व्यक्तिगत स्तर पर अपनी-अपनी ऊर्जा खत्म करने से इस किसी का हित नहीं होगा।
<h3><span style="color: #ff9900;">चीन के हालात खराब, उसको भी दी जा सकती है मदद</span></h3>
इस परियोजना से जुड़े थिंक टैंक का कहना है कि चीन को शामिल करने का विचार काफी सोच विचार कर डाला गया है। क्योंकि चीन बाहर से चीन भले ही कितना ही शक्तिशाली दिखाई देता है लेकिन चीन की आतंरिक हालत बहुत खराब हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है। चीन में बदलाव की सुगबुगाहट है। चीन के कुछ इलाके कम्युनिस्ट शासन से स्वतंत्र होना चाहते हैं। यह चीन के विखण्डन की शुरूआत है। चीन को भी दुनिया के सहयोग की आवश्यकता होगी।
<h3><span style="color: #ff9900;">विकसित और सुरक्षित विश्व बनाना एक मात्र लक्ष्य</span></h3>
थिंक टैंक का मानना है चीन को अलग-थलग ज्याद दिनों तक नहीं किया जा सकता। अगर उसे अलग रखा गया तो वो अपनी नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग करने की ओर अग्रसर हो सकता है। इसलिए अभी से ऐसा सोचा जा रहा है कि सभी सक्षम देशों की ऊर्जा को सकारात्मकता से दुनिया को विकसित और सुरक्षित करने की दिशा में बढ़ा जाए।.