Srinagar Padwoman Mamata: नारी को निरंतर मानव रचना का वरदान प्राप्त है। महिलाओं को इस क्रम विकास के चक्र में तीन दिन एक तरह की पीड़ा से गुजरना पड़ता है जिसे आम बोलचाल की भाषा में मासिकधर्म या पीरियड्स कहा जाता है। पुरुषों के लिए इसे समझना कठिन है। महिलाओं के लिए महीने के ये वो तीन दिन हैं जब उन्हें अपने अंदर के बदलाव को महसूस करना होता है।
हमारे समाजिक तानेबाने की बात की जाए तो समाज भी पीरियड के उन तीन दिनों को अभी तक ठीक से स्वीकार नहीं कर पाया है। लेकिन कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक महिला ने इस पूरी सोच को तोड़कर वो मिसाल कायम किया है, जिससे कश्मीर में वो तारीफ हासिल कर रही है।
जी हां, इरफाना जरग़र (Irfana Jargar) श्रीनगर में Padwoman के नाम से मशहूर हैं। कर्फ्यू, लॉकडाउन और समाजिक अड़चनों को पीछे छोड़ते हुए इरफ़ाना ज़रगर एक मिशन पर निकल चुकी है। बीते सात सालों से उनके शहर श्रीनगर की कई महिलाएं पीरियड्स के दौरान सैनिट्री पैड की ज़रूरत के लिए उन पर पूरी तरह निर्भर हैं।
इरफ़ाना व्यक्तिगत तौर पर ये समझती हैं कि ये महिलाओं के लिए कितना मुश्किल है। वह बताती हैं कि जब उनकी उम्र कम थी तो 'ख़ुद के लिए जा कर सैनिट्री पैड खरीदने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थीं।'
वह कहती हैं, ''मेरे पिता मेरे लिए ख़रीदा करते थे, जब मेरे पिता का निधन हुआ तो मेरे लिए ये सोचना भी मुश्किल था कि मैं अपने भाइयों से पैड्स खरीदने के लिए कहूं।''
इस तरह की कठिनाईयों को झेल कर इरफ़ाना ने तय किया कि वो श्रीनगर की ऐसी महिलाओं की मदद करेंगी। उन्होंने महिलाओं व किशोरियों के बीच सैनिटरी पैड बांटने व जागरूकता फैलाने का अभियान शुरू किया। जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है।
इरफ़ाना का कहना है कि स्कूल के दिनों से ही मैंने महसूस किया कि इस सीमांत क्षेत्र में हमेशा तनाव का माहौल रहता है। ऐसे में महिलाओं का बेखौफ, आजाद होकर घूमना-फिरना आसान नहीं है। मैंने कई ऐसे घर भी देखे हैं, जहां कोई पुरुष न होने की स्थिति में महिलाओं के लिए अपनी जरूरत की मूलभूत चीजें बाजार जाकर खरीदना मुश्किल हो जाता है।
मैं हमेशा महिलाओं के उन पक्षों के बारे में सोचती थी, जिन पर लोग बात करने से कतराते हैं। छोटी उम्र में, तो खुद के लिए सैनिटरी पैड खरीदने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती थी। मेरे पिता मेरे लिए पैड्स खरीदा करते थे।
पुरुष दुकानदारों के सामने महिलाओं को झिझकते देखा
इरफ़ाना जरगर बताती हैं कि ‘मैंने श्रीनगर में देखा कि ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां दुकान पर जाकर पैड खरीदने में शर्म महसूस करती हैं। अगर दुकान तक जाती भी हैं, तो कहती हैं, 'मुझे वह दो'। वे शर्मिंदगी के कारण PAD शब्द भी नहीं बोल सकतीं। इस तरह के अनुभवों के बाद मैंने श्रीनगर में महिलाओं को नि:शुल्क सैनिटरी पैड बांटना शुरू किया और उन्हें शारीरिक स्वच्छता के बारे में भी बताया।
पिता ने हौसले को उड़ान दी
इरफ़ाना जरग़र आगे बताती हैं कि शुरुआती दौर में जब मैंने सैनेट्रीपैड बांटने शुरू किये तो मेरे पिता ने मेरी आर्थिक मदद की। लेकिन हकीकत ये भी है कि मेरे इस काम को लेकर मेरे परिवार के दूसरे लोग लगातार मुझसे नाराज रहते थे। और जब मैं इस बात को लेकर सोशल मीडिया पर बात किया करती तो ये बात उन्हें नागवार गुजरती।
नगर निगम में नौकरी मिलने के बाद मुझे मजबूती मिली
इरफ़ाना जरग़र के लिए श्रीनगर में गरीब महिलाओं के बीच मुफ्त सैनेट्री पैड बांटना आसान नहीं रहा। लेकिन स्थानिय नगर निगम में जब इरफ़ाना को नौकरी मिली उसके बाद उन्होंने इस काम को और ज्यादा विस्तार दिया। महिलाओं को साफ सफाई के महत्त्व को समझाया जिसके बाद उन्होंने बहुत सी महिलाओं को संक्रमित होने से बचाया।