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मध्य एशिया तक था कश्मीर के प्रतापी सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड़ का साम्राज्य

मध्य एशिया तक था कश्मीर के प्रतापी सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड़ का साम्राज्य

कश्मीर के कार्कोट नागवंशी सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड़ ने भारत पर पश्चिम दिशा से हमला करने वाले मुस्लिम आक्रांताओं के छक्के छुड़ा दिए थे। ललितादित्य मुक्तपीड़ को कश्मीर का सिकंदर भी कहा जाता है। मुस्लिम आक्रांताओं के दिलों में ललितादित्य मुक्तपीड़ का ऐसा आतंक छाया हुआ था कि अलगे 200 वर्षों तक किसी अरब, तुर्क, मुगल, ईरानी, तूरानी, उज़्बेक या हज़ारा ने भारत का रुख़ नहीं किया।

ललितादित्य के काल में कश्मीर राज्य की सीमाएं पूरब में बंगाल, उत्तर-पूर्व में तिब्बत, पश्चिम में ईरान और दक्षिण में कोंकण तक पहुंच गईं थीं। उसने अपनी विजय पताका कैस्पियन सागर तक फहराई। सुदूर उत्तर में उसने तुर्किस्तान और पीकिंग यानी चीन को हराकर चीन के राजा को अपने पक्ष में संधि करने को विवश किया था।

प्रसिद्ध इतिहासकार आर.सी. मजूमदार के अनुसार ललितादित्य सुप्रसिद्ध दुर्लभ वंश के शासक प्रतापादित्य का तीसरा पुत्र था। जो एक कुशल घुड़सवार और योद्धा था, जिसे हम लोग कार्कोट सम्राट के रूप में भी जानते हैं। ललितादित्य मुक्तपीड़ संभवत: भारत का पहला ऐसा सम्राट था जिसने काराकोरम पर्वत श्रृंखला को पार कर तिब्बत के पठार से आगे चीन और पश्चिम में कैस्पियन सागर तक अपनी विजय पताका फहराई। इसके अलावा उसने कन्नौज के शासक यशोवर्मन को युद्ध में हराया था, जो हर्ष वर्धन का उत्तराधिकारी था।

<a href="https://hindi.indianarrative.com/vichar/sharada-shaktipeeth-temple-central-asias-most-famous-education-center-only-ruins-19144.html">ललितादित्य के समय में कश्मीर अपनी शक्ति के उत्कर्ष पर था।</a> 12वीं शताब्दी में कश्मीरी विद्वान कल्हण पंडित द्वारा लिखित राजतरंगिणी में एक श्लोक ललितादित्य के प्रताप को वर्णित करता है। ये श्लोक कश्मीर की जनता के बारे में लिखा गया है:
विजीयते पुण्यबलैर्बर्यत्तु न शस्त्रिणम
परलोकात ततो भीतिर्यस्मिन् निवसतां परम्।।
इस श्लोक का अर्थ है-कश्मीर पर शस्त्रों से नहीं केवल पुण्य करने से विजय पाई जा सकती है। वहां के निवासी केवल परलोक से भयभीत होते हैं न कि शस्त्रधारियों से।
<h2>कला-कौशल प्रेमी सम्राट ललितादित्य मुक्तपीड़</h2>
विश्व विजेता बनने की चाहत रखने वाला ललितादित्य मुक्तपीड़ कला और कौशल का भी प्रेमी था। 14वीं शताब्दी के सिकंदर बुतशिकन के विपरीत ललितादित्य को मूर्तिकला, स्थापत्य कला के साथ संस्कृति और कला के विभिन्न आयामों से प्यार था। ललितादित्य मुक्तापीड़ ने कश्मीर में भव्य नगरों, मंदिरों, महलों और मूर्तियों का निर्माण कराया। सूर्य का प्रसिद्ध मार्तंड मंदिर ललितादित्य मुक्तापीड़ ने ही बनवाया था। जिसके सुंदर भग्नावशेष आज भी उसकी निर्माण कौशल की गाथा कहते हैं। विशाल प्रांगण में बने इस मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर विविध मूर्तियां उत्कीर्ण की गईं थीं। <a href="https://hindi.indianarrative.com/kala/katas-raj-temple-pakistan-bad-condition-20130.html">यह मंदिर कश्मीर की स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।</a>

लेकिन इतिहास ने इस महान योद्धा को भुला दिया। आज भी हमारी पाठ्य पुस्तकों में भारत के राजाओं की पराजय की जानकारियां मिलती हैं। जबकि ऐसे शूरवीर योद्धा और विजयी सम्राट के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। ऐसा साम्यवादियों के प्रभाव और आधुनिक इतिहासकारों के षडयंत्र के कारण किया गया लगता है।अब धीरे-धीरे इतिहास के अंधकार में दफन ये सभी जानकारियां निकलकर सामने आ रही हैं और हमें अपने स्वर्णिम इतिहास के बारे में पता चल रहा है।.