एमएसपी और एमपीएमसी के मुद्दे पर शुरू हुए किसान आंदोलन (Kisan Andolan) अब छोटे किसानों और मजदूरों पर ही भारी पड़ने लगा है। छोटे किसानों की तैयार फसलें मण्डी तक नहीं पहुंच रही हैं। ऐसे छोटे किसानों फल और सब्जियों के उत्पादक ज्यादा हैं। बहरहाल सोमवार की सर्द शाम को सरकार और किसानों के बीच बर्फ पिघलने की संभावना बनी है। किसान आंदोलन (Kisan Andolan) खत्म होेन की संभावनाएं पैदा हुई हैं।
और सरकार के बीच जो गतिरोध पैदा हुआ था उसमें अब कुछ सकारात्मक परिवर्तन नजर आ रहे हैं। सोमवार देर शाम को ऑल इंडिया किसान संघर्ष समिति की ओर से कहा गया है कि किसान सरकार से बातचीत को तैयार हैं लेकिन उनकी कुछ शर्तें हैं। सरकार अगर वो शर्तं मानने को तैयार होगी तो बातचीत शुरू हो सकती है। किसानों का कहना है सरकार पुराने प्रस्ताव छोड़कर कुछ नए प्रस्ताव देती है तो किसान आंदोलन (Kisan Andolan) खत्म करने पर बातचीत शुरू हो सकती है। सरकार को बातचीत का एजेंडा नए सिरे से बनाना होगा। इसके अलावा बातचीत नए कानूनों को वापस लेने की दिशा में होनी चाहिए।
इस तरह किसानों ने गेंद एकबार फिर सरकार के पाले में डालने की कोशिश की है। जबकि सरकारी सूत्रों का कहना है नए कृषि कानूनों में संशोधन प्रस्ताव के लिए दरवाजे हमेशा खुले हैं लेकिन कानून वापस किसी भी सूरत में नहीं होंगे। इसके साथ एक खबर यह भी है कि किसान संगठन अब संगठित नहीं रहे हैं। लगभग एक दर्जन किसान संगठन चाहते हैं कि सरकार एमएसपी पर कानून बनाने का आश्वासन दे तो आंदोलन खत्म किया जा सकता है।
कुछ संगठन अब भी ऐसे हैं जो बात फिर शुरू करना चाहते हैं लेकिन कानूनों की वापसी की शर्त अब भी है। किसान आंदोलन (Kisan Andolan) छोटे किसानों पर दोहरी मार मार रहा है। उन्हें न तो एमएसपी का लाभ मिल रहा है और न ही उनकी तैयार फसल मण्डियों तक पहुंच रही है। ऐसे किसानों में फल और सब्जी उगाने वाले किसान हैं। इसके अलावा फैक्ट्री कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को भी किसान आंदोलन अखरने लगा है। रोड साइड के ढाबा चलाने वाले भी किसान आंदोलन से दुखी हैं। पिछले बीस दिनों से ग्राहक तो आ नहीं रहे लेकिन स्टाफ तथा ओवर हेड एक्सपेंसेज तो करने पड़ ही रहे हैं।.