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श्रद्धांजलि: अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए शांति का फार्मूला देने वाले मौलाना वहीदुद्दीन नहीं रहे, कोरोना के बने शिकार!

photo courtesy vijay upadhyay

 
जाने-माने इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान का 21 अप्रैल को निधन हो गया। उन्हें कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद 12 अप्रैल को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 96 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली। उनके परिवार में दो बेटों और दो बेटियों हैं। मौलाना के बेटे ने बताया कि एक हफ्ते पहले सीने में संक्रमण की शिकायत होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में उनकी कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई। मौलाना वहीदुद्दीन खान के निधन की खबर जिसने भी सुनी, वो शोक में डूब गया। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर शोक जताते हुए कहा कि मौलाना वहीदुद्दीन खान के निधन से दुख हुआ। धर्मशास्त्र और अध्यात्म के मामलों में गहरी जानकारी रखने के लिए उन्हें याद किया जाएगा। वह सामुदायिक सेवा और सामाजिक सशक्तीकरण को लेकर भी बेहद गंभीर थे। परिजनों और उनके असंख्य शुभचिंतकों के प्रति मैं संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।  'मौलाना' के नाम से मशहूर वहीदुद्दीन खान को इसी साल जनवरी में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मविभूषण से नवाजने की घोषणा केंद्र सरकार ने की थी। 

 
मौलाना को इससे पहले साल 2000 में देश के तीसरे नंबर के नागरिक सम्मान पद्मभूषण से भी नवाजा जा चुका है। उन्होंने कुरान का समकालीन अंग्रेजी में अनुवाद किया था। उनकी पहचान इस्लाम के एक बड़े विद्वान के रूप में रही है। उन्होंने अयोध्या मामले के समाधना के लिए एक 'विकल्प' भी पेश किया था। उन्होंने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के लिए अपना एक 'शांति फॉर्मूला' दिया। अपने इस 'विकल्प' के लिए वह सुर्खियों में रहे। उन्होंने मुस्लिम समुदाय को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के दावे को छोड़ देने की सलाह दी लेकिन उनके इस सुझाव को खारिज कर दिया गया। 
 
मौलाना के अयोध्या पर सुझाव को जाने-माने विधिवेत्ता नानी पालखीवाला ने अत्यंत 'संतुलित समाधान' बताया। मौलना ने कहा था कि अयोध्या में मुस्लिमों को अपने दावे को छोड़ देना चाहिए और हिंदू समुदाय को यह भरोसा देना चाहिए कि वह मथुरा एवं काशी पर कोई विवाद खड़ा नहीं करेगा। आपको बता दें कि मौलाना का जन्म साल 1925 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा पारंपरिक रूप से हुई। उदारवादी प्रवृत्ति के पक्षधर मौलाना अपने जीवन भर सौहार्दपूर्ण समाज के बारे में हमेशा अपनी राय रखी। साथ ही उन्होंने कुरान की चरमपंथी एवं कट्टरवादी व्याख्याओं के खिलाफ मुहिम छेड़ी। मौलाना ने 200 से ज्यादा किताबें लिखीं।