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कश्मीर में मोदी सरकार के कदमों से पाकिस्तान के वजूद को ही खतरा

कश्मीर में मोदी सरकार के कदमों से पाकिस्तान के वजूद को ही खतरा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कश्मीर में आतंकवाद की वर्षों से उलझी समस्या के  समाधान के लिए जो कदम उठाए हैं, उसने पाकिस्तान के वजूद पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले तो जम्मू और कश्मीर को दो संघ शासित राज्यों में बांट दिया गया और अब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करके केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर में किसी भी भारतीय के लिए भूमि खरीदने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

इस आदेश को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का अनुकूलन) थर्ड ऑर्डर, 2020 कहा गया। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हो गया। इस आदेश के अनुसार राज्य के 12 कानूनों को संपूर्ण रूप से निरस्त कर दिया गया है। जम्मू-कश्मीर के जिन कानूनों को पूरे तौर पर निरस्त किया गया है, उनमें जम्मू-कश्मीर एलियेनेशन ऑफ लैंड एक्ट, जम्मू और कश्मीर बिग लैंडेड इस्टेट्स एबोलिशन एक्ट, जम्मू एंड कश्मीर कॉमन लैंड्स (रेगूलेशन) एक्ट, 1956, जम्मू एवं कश्मीर कंसोलिडेशन ऑफ होल्डिंग्स एक्ट, 1962 आदि शामिल हैं।

आजादी मिलने से पहले ही पाकिस्तान के भावी हुक्मरानों की मंशा साफ थी कि “एक बार तो हम कश्मीर में अपने मुस्लिम भाइयों की सुरक्षा और इच्छाओं को नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन हमारी अपनी सुरक्षा के लिए यह बहुत जरूरी है कि कश्मीर को भारत में नहीं जाना चाहिए।” नक्शे पर एक नज़र दौड़ाना ही यह समझने के लिए पर्याप्त है कि संपूर्ण कश्मीर का कब्जा भारत के अधिकार में आ जाने से पाकिस्तान की सैन्य सुरक्षा गंभीर रूप से खतरे में पड़ जाएगी। यदि कश्मीर की 1947 में मौजूद पश्चिमी सीमाओं को आज लागू कर दिया जाए तो वह लाहौर और रावलपिंडी के बीच 180 मील लंबी महत्वपूर्ण सड़क और रेल मार्ग से केवल कुछ मील की दूरी के सामानांतर होगी।

<img class="wp-image-16239 size-large" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/10/india-pakistan-kashmir-conflict-1024×576.jpg" alt="india-pakistan-kashmir-conflict" width="525" height="295" /> कश्मीर की 1947 में मौजूद सीमा लाहौर और रावलपिंडी के बीच 180 मील लंबे सड़क और रेल मार्ग से कुछ मील की दूरी के सामानांतर होगी।

युद्ध में ये पाकिस्तान की संचार की सबसे महत्वपूर्ण नागरिक और सैन्य लाइनों के लिए एक खतरनाक स्थिति होगी। अगर पाकिस्तान इस मार्ग की ठीक से सुरक्षा करता है तो ऐसा करने के लिए उसकी सेना का एक बड़ा हिस्सा लगेगा और वह लाहौर के उसके मोर्चे को खतरनाक रूप से कमजोर कर देगा। अगर पाकिस्तान कश्मीर की सीमाओं में घुसपैठ किये बगैर उसी मोर्चे पर अपनी ताकत को केंद्रित करता तो उससे भारत को रावलपिंडी के पाकिस्तानी सैन्य मुख्यालय से लाहौर, सियालकोट और यहां तक ​​कि झेलम तक को काटने का मौका मिल जाता।

केवल पूरे कश्मीर पर कब्जा भी भारत को अगर वह चाहे तो सीधे हज़ारा और मुरी तक युद्ध करने के लिए सक्षम कर सकता है-जो कि मौजूदा फ्रंटलाइन से 200 मील पीछे स्थित हैं। पाकिस्तान के हुक्मरान समझते हैं कि निश्चित ही युद्ध की स्थिति में भारत ऐसा कर सकता है, लेकिन शांति के समय में यह स्थिति उनको पूरी तरह अस्वीकार्य थी। क्योंकि इससे पाकिस्तान स्थायी रूप से ऐसे खतरे के साये रहता कि उसकी आजादी कभी भी खत्म हो सकती थी। निश्चित रूप से यह वह पाकिस्तान नहीं था, जैसा कि उसके आका चाहते थे।

आर्थिक दृष्टिकोण से पाकिस्तान की स्थिति कश्मीर पर स्पष्ट रूप से बहुत ज्यादा निर्भर है। भारत के तो पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्य ही कश्मीर से निकलने वाली नदियों के पानी पर निर्भर हैं। इसके विपरीत पाकिस्तान की पूरी कृषि अर्थव्यवस्था विशेष रूप से कश्मीर से निकलने वाली नदियों पर निर्भर है। मंगला वॉटर हेडवर्क्स वास्तव में कश्मीर में स्थित था और मारला हेडवर्क्स कश्मीर सीमा से एक मील या उसकी सीमा के भीतर था। अगर कश्मीर रियासत पूरी तरह भारतीय हाथों में होती तो आज पाकिस्तान की स्थिति क्या होती? कश्मीर के वन क्षेत्र, उसकी लकड़ी का प्रमुख हिस्सा और उसकी आय का मुख्य स्रोत-झेलम नदी का अधिकांश हिस्सा भी पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया।

<img class="wp-image-16241" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/10/KashmirBeauty-300×174.jpg" alt="KashmirBeauty" width="525" height="305" /> पाकिस्तान के अलग अस्तित्व के लिये कश्मीर जरूरी।

इस तरह साफ है कि कश्मीर पर पाकिस्तान की कब्जा करने की कोशिश केवल उसकी इच्छा का मामला नहीं था, बल्कि वह उसके भारत से अलग अस्तित्व के लिए पूर्ण रूप से आवश्यक था। जिस वास्तविकता को तत्कालीन भारतीय नेताओं ने काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया। हालांकि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कुछ समय बाद संविधान सभा के समक्ष यह बात साफ तौर पर रखी थी कि निश्चित रूप से कश्मीर के विलय के संबंध में होने वाले निर्णय में वह साफ तौर पर रूचि रखते थे। पाकिस्तान, सोवियत संघ, चीन और अफगानिस्तान से लगती अपनी सीमा के साथ ही अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण कश्मीर, भारत की सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय संपर्कों के लिये सहज रूप से जुड़ा हुआ है।

हालांकि बात केवल यही नहीं है। कश्मीर के बगैर मध्य एशिया के राजनीतिक मानचित्र पर भारत की भूमिका कुछ भी नहीं है। कश्मीर के बिना भारत मध्य एशिया के राजनीतिक मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण स्थिति को खो देगा। रणनीतिक रूप से कश्मीर भारत की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। यह इतिहास के आरंभ से ही होता आया है। कश्मीर के उत्तरी इलाके वर्तमान पाकिस्तान के उत्तरी-पश्चिम प्रांत और उत्तरी पंजाब के लिए सीधे प्रवेश मार्ग उपलब्ध कराते हैं। यह उत्तर में मध्य एशियाई गणराज्यों, पूर्व में चीन और पश्चिम में अफगानिस्तान को खुलने वाली भारत की एकमात्र खिड़की है।.