लगभग 17 साल पहले यूपी के एक डिप्टी एसपी ने माफिया मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाया था। उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। मुलायम और मुख्तार अंसारी में बहुत घनिष्ठता थी। यह नेता और अपराधू का नेक्सस था। उस समय मुलायम सिंह यादव ने अपनी ताकत का नाजायज इस्तेमाल किया। डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया और मुख्तार अंसारी से पोटा हटा दिया। यूपी की योगी सरकार ने 17 साल बाद मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाने के मामले को सही माना और अब उसी मामले में मुख्तार को पंजाब से यूपी वापस लाया जा रहा है।
मुख्तार और मुलायम सिहं यादव के रिश्तों के बारे में उसी शैलेंद्र सिंह ने कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। शैलेंद्र सिंह ने कहा है कि यह मामला उस समय का है जब मुख्तार अंसारी के पास से सेना के इस्तेमाल में आने वाली (एलएमजी) लाइट मशीन गन बरामद हुई थी और 'पोटा'के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मुख्तार अंसारी के अपराधों को छुपाया और उससे पोटा हटाकर साधारण आर्म्स एक्ट लगा दिया। शैलेंद्र सिंह ने कई और खुलासे किए हैं जिसके बाद मुलायम सरकार पर कई सवाल खड़े होते हैं।
किसी को नहीं पता था कि मुख्तार अंसारी पर 'पोटा' लग चुका है
'लाइट मशीन गन' केस के बारे में शैलेंद्र सिंह ने बताया कि सरकार से परमीशन के बाद मुख्तार अंसारी की इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस लगी हुई थी। मैंने उसकी फोन कॉल सुने और उन्हें रिकॉर्ड किया। मुझे जानकारी मिल गई थी कि वो बेहद घातक हथियार एलएमजी लेकर चल रहा है। मैंने सटीक सूचना के आधार पर मुखतार अंसारी के कब्जे से लाइट मशीन गन की रिकवरी की तो सबने मुझे बधाई दी।" लेकिन तब तक अफसरों को मालूम नहीं था कि मैंने नियमतः पोटा में अपराध पंजीकृत करवा दिया है। क्योंकि ये लोग सिंपल आर्म्स एक्ट में रिकवरी समझ रहे थे। जिसके पास से प्रतिबंधित हथियार रिकवर होता है उसके ऊपर पोटा ही लगता है। शाम को जब शासन और सरकार को पता चला की पोटा लग गया है और पोटा लगने के बाद मुख्तार का बचना नामुमकिन है तो मुख्यमंत्री कार्यालय से मुखतार को बचाने का दबाव डाला जाने लगा।
मुख्तार पर लगे पोटा को हटाने के लिए बनाया जाने लगा दबाव
शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि मुझे कहा गया कि "इसे आप वापस ले लीजिए लेकिन मैंने कहा कि FIR दर्ज हो चुकी है इसे मैं वापस नहीं ले सकता। फिर मुझे बोला गया की ठीक है लेकिन अब इसका (मुख्तार) का नाम मत लीजिएगा। जब आपसे इसपर 'दूसरा आईओ इन्वेस्टिगेशन' करेगा तो मुख्तार नाम मत लीजिएगा। इस पर मैंने कहा कि,मैंने वादी बनकर उसका नाम लिखवाया है, उसका नाम दर्ज है, और मैं अपने ही बयान से पलट जाऊं ऐसा संभव नहीं है। मेरे इस बयान के बाद मुझे इस केस से हटाकर लखनऊ बुला लिया गया।
अपराधी बैठ कर डिसीजन ले रहे हैं लिख कर दे दिया रेजिग्नेशन
शैलेंद्र सिंह ने आगे कहा कि, जब स्थिति खराब होते जा रही थी तो मैंने रेजिग्नेशन देने का फैसला लिया और 11फरवरी को पहला रेजिग्नेशन भेजा। और रेजिग्नेशन में यह लिखा कि, “अब राजनीति का इतना अपराधीकरण हो गया है कि अपराधी निर्देश दे रहे हैं कि पुलिस को क्या करना है। इससे अच्छा होगा की हम नौकरी छोड़ दे। लेकिन इसके बाद भी एक और रेजिग्नेशन देना पड़ा।
दो बार देना पड़ा रेजिग्नेशन
उन्होंने कहा कि रेजिग्नेशन में मैंने जो कुछ भी लिखा था उसे देखकर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह नाराज हो गए और कहने लगे की ये जानबूझकर ये कंडीशनल रेजिग्नेशन लिखा है कि राजनीति का अपराधीकरण हो गया जिससे ये स्वीकार न किया, फिर मैंने 10दिन बाद दूसरा रेजिग्नेशन भेज दिया और कहा कि आप जैसे चाहें एक्सेप्ट कर लें लेकिन मुझे आप लोगों के साथ काम नहीं करना है।
कृष्णानंद राय को मारने और सेना के भगोड़े से LMG खरीदने की पूरी रिकॉर्डिंंग
शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार अंसारी का एलमजी में कनेक्शन को लेकर कहा कि, लखनऊ कैंट थाने में कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी के बीच क्रॉस फायरिंग हुई थी, यह 2003की घटना है। इस घटना के बाद ऊपर से आदेश आया और हमें बोला गया कि आप इन दोनों पर निगरानी रखिए वरना कोई बहुत बड़ा हदसा हो जाएगा। और निगरानी रखने के दौरान ही इन लोगों को मैंने पकड़ा और पूरी रिकॉर्डिंग में मुख्तार अपने आदमी के जरिए सेना के भगोड़े (बाबूलाल यादव जिसने लाइट मशीन गन चुकाकर भागा था) से बात कर रहा था और करीब एक करोड़ में इनका सौदा पक्का हो गया था। मुख्तार लगातार यह बोल रहा था कि हमें किसी भी कीमत पर यह एलमजी चाहिए, एलमजी के पीछे खास वजह यह थी कि कृष्णानंद की जो बुलेटप्रूफ गाड़ी है वो सिंपल राइफल के अगेंस्ट बुलेटप्रूफ है और एलएमजी ही उसको भेद सकती थी। मुख्तार को कहते हुए सुना गया कि यह एलमजी कृष्णानंद राय की गाड़ी को भेद देगी और उसे हमें किसी भी तरह मारना ही है।