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मुनव्वर राणा- BJP के घोर मुखालिफ शायर, यूपी छोड़ कर भागे नहीं, लखनऊ ही में हैं! अब योगी के मुरीद हैं- जानें क्यों

मुखालिफ से योगी के मुरीद हो गए मुनव्वर राणा

योगी-मोदी की मुखालफत करने वाले और पानी पी-पी कर कोसने वाले बुजुर्ग शायर, अब योगी के मुरीद हो गए हैं, लेकिन मक्कारी नहीं छोड़ी है। बीजेपी के जीतने पर यूपी छोड़ने का हलफ उठाने वाले शायर-ए-आजम ने कहा है योगी और उनकी मां की तस्बीर अपने ट्विटर पर शेयर की है। साथ में एक शेर भी जड़ दिया। जनाब यहीं नहीं रुके, बोले- मां की इबादत में मैंने 50 साल गुजार दिए। मुझे वो तस्वीर अच्छी लगी तो खुद को रोक नहीं पाया, इसलिए योगी जी को अपनी शायरी ट्वीट कर दी।

अब तक तो आप भी समझ गए होंगे कि हम बात कर रहें ‘मां’ को समर्पित शायरी करने वाले मशहूर शायर मुनव्वर राणा की। यह वही मुनव्वर राणा हैं जिन्होंने यूपी में दोबारा योगी सरकार बनने पर उत्तर प्रदेश छोड़ कर चले जाने का ऐलान किया था। अब उन्हीं मुनव्वर राणा ने सीएम योगी आदित्यनाथ की मां के साथ तस्वीर शेयर करते हुए अपना एक शे'र लिखा है। इस बीच मुनव्वर राणा ने एक ऑन लाइन अखबार से कहा कि मां के साथ योगी की तस्वीर देखकर बहुत अच्छा लगा।

जब उनसे पूछा गया कि यूपी में योगी की सरकार दूसरी बार बन चुकी है आपके ‘ऐलान’ का क्या हुआ? इस पर ‘मुनव्वर राणा ने कहा कि खराब सेहत की वजह से वह यूपी छोड़कर नहीं जा पाए।’ध्यान रहे, मुनव्वर राणा उस वक्त भी बीमार थे जब वोयोगी सरकार के खिलाफ तबर्राह पढ़ते थे। योगी के फैसलों की तीखे शब्दों में आलोचना करने वाले मुनव्वर राणान ने धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर उतरवाने को अच्छा कदम बता कर सरकार की तारीफ भी की।

मुनव्वर राणा ने बताया कि वह फिलहाल लखनऊ में ही हैं। सीएम योगी की मां के साथ तस्वीर साझा करने को लेकर उन्होंने कहा, ''आज सुबह आमतौर पर आप चाय के मजे और अखबार की बुरी खबरों से शुरू होती है। जब मैंने सोशल मीडिया पर योगी जी की तस्वीर देखी उनकी मां के साथ। मुझे अच्छा लगा। मैं अपनी मां को खो चुका हूं। मुझे खुशनसीब लगते हैं वे लोग जिनके हिस्से में मां होती है। मैंने 50साल से इसी इबादत (मां पर शायरी) में अपनी जिंदगी गुजार दी। मुझे वह तस्वीर अच्छी लगी तो मैं खुद को रोक नहीं पाया तो मैंने योगी जी को अपनी शायरी को ट्वीट कर दिया।'' 

मुनव्वर राणा ने सियासत से पल्ला झाड़ते हुए कहा, ''मेरा सियासत से कोई लेना देना ही नहीं रहा। यह तो मुफ्त में लोगों ने खासतौर पर मीडिया ने इधर का उधर, उधर का इधर करके मुझे विवादित बना दिया। दूसरी बात मैंने उत्तर प्रदेश छोड़ने का इरादा कर लिया था। मेरी उम्र का एक हिस्सा कलकत्ते में गुजरा था, मैंने वहां एक फ्लैट के लिए बातचीत भी की थी। सोच रहा था कि चला जाऊं। यह मेरी बदनसीबी है कि मैं डायलिसिस पर चल रहा हूं। हर तीन दिन बाद मुझे उठाकर ले जाया जाता है।''

राणा ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ''जब मक्का गया था, वहां मेरे एक दोस्त थे, दूतावास में, उन्होंने बताया कि किसी गैर मुस्लिम हिन्दुस्तानी दुर्घटना में घायल हो गए हैं, उन्हें मक्का लाया गया था, मैंने कहा कि यहां तो कोई गैर मुस्लिम आ नहीं सकता है? तो उन्होंने कहा था कि जख्मी का कोई मजहब नहीं होता है। वही सूरत-ए-हाल मेरी है। अब हम इस हाल में हैं। इस बुढापे में कौन साथ देगा? सब अपनी-अपनी दुनिया में मस्त हैं। एक बेटा है, वह अपना देखेगा कि हमें देखेगा। इसलिए हमने हिम्मत हार के सोचा कि इस मिट्टी को क्या छोड़ना। इसी रायबरेली की मिट्टी में साढ़े पांच सौ साल-पौने छह सौ साल से हमारे बुजुर्गों की कब्रे हैं।

आखिर में मक्कारी भरा एक बयान, ‘पिछली सरकार में प्रशासन ने मेरे साथ जो सलूक किया था, जिस तकलीफ से मैं गुजरा, उन हालात में मुझे वही कहना चाहिए था, जो मैंने कहा।'