पाकिस्तान से न सिंध संभल रहा है न पखतूनिस्तान संभल रहा है और न ही इस्लामाबाद और कराची में उठे बवंडर को रोक पाया है, शिनजियांग के मुसलमानों की बात करना तो उसके वश की बात नहीं लेकिन पाकिस्तान के पीएम इमरान खान और उनके मंत्रियों को कश्मीर की चिंता सबसे ज्यादा है। पाकिस्तान युद्ध के ढोल पीट रहा है। सीमा पर मिसाइलें तैनात कर दी गई हैं। सैन्य हवाई अड्डों पर चीनी एयरफोर्स के साथ पाकिस्तानी एयरफोर्स के फाइटर जेट ऐसे गुर्रा रहे हैं कि कश्मीर में कुछ भी हआ तो ये भारत को गटक जाएंगे। पाकिस्तान की सरकार ने दुनिया में शोर मचा दिया है कि मोदी सरकार कश्मीर में फिर से कोई बड़ा बदलाव करने जा रही है। जिस तरह अचानक कश्मीर में 20 हजार सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है उसको देखकर पाकिस्तान बौखला गया है। पाकिस्तान ने यूनाईटेड नेशंस को चिट्ठी लिखी दी है। यूरोपियन यूनियन और पश्चिमी देशों मिशनों को बताया जा रहा है कि भारत कश्मीर में फिर बदलाव करने जा रहा है।
कश्मीर, मतलब कश्मीर का वो हिस्सा भी जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है, वो भी भारत का ही अंग तो फिर भारत अपने देश में कुछ करने से पाकिस्तान के पेट में दर्द क्यों हो रहा है। पाकिस्तान ने अपने पालतुओं को 1993 में प्रश्रय दिया और घाटी से हिंदु कश्मीरी पंडितों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया था। (हालांकि, उस समय भी अधिकाशं कश्मीरी मुसलमान भारत के ही साथ थे।) उस समय पाकिस्तान कश्मीरी बच्चियों से बलात्कार और हत्याकाण्ड पर खुशी मना रहा था। उसे लग रहा था कि अब या तब कश्मीर पर उसका कब्जा हो जाएगा। 1993 से शुरू हुए इस आतंक काण्ड का पटाक्षेप साल भर पहले हुआ तो पाकिस्तान सरकार के तन-बदन में आग लगी हुई है। पाकिस्तान को घाटी का अमन-चैन पसंद नहीं आ रहा है। कश्मीर की झूठी कहानियां और फर्जी फोटो-वीडियो विदेशों में बेचे जा रहे हैं।
पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य को दो अलग-अलग राज्यों में बांटने और अनुच्छेद 370 के साथ धारा 35 खत्म करने के साथ ही मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों को विश्वास दिलाया था कि जैसे ही नए राज्यों में शांति व्यवस्था कायम हो जाएगी वैसे ही विधानसभाओं को चुनाव करवाए जाएंगे। इस अगस्त में दो साल पूरे हो रहे हैं। मोदी सरकार अपने वादे के अनुसार कश्मीर में चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। इसलिए राज्य के चारों पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित तमाम नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी ने 24 जून को दिल्ली बुलाया है।
जम्मू-कश्मीर को लेकर आगे की योजनाओं पर चर्चा के लिए केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने इन नेताओं से संपर्क किया है और पीएम आवास पर मुलाकात के लिए आमंत्रित किया है। जिन नेताओं को बुलाया गया है उनमें पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भी शामिल हैं।
जम्मू-कश्मीर से पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तारा चंद, पीपील्स कॉन्फ्रेंस लीडर मुजफ्फर हुसैन बेग और बीजेपी नेता निर्मल सिंह और कवींद्र गुप्ता को भी बुलाया गया है। इनके अलावा सीबीआई (एम) नेता मोहम्मद युसूफ तारागामी, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के चीफ अल्ताफ बुखारी, पीपल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन, पैंथर्स पार्टी के नेता भीम सिंह को भी आमंत्रित किया गया है।
दरअसल, पाकिस्तान नहीं चाहता है कि कश्मीर में चुनाव हों और वहां जनता की चुनी हुई सरकार कामकाज संभाले। ऐसा हो जाने से पाकिस्तान के पाखण्ड का अंत होने वाला है। क्यों कि आम चुनावों के बाद पाकिस्तान को कुछ भी आरोप लगाने का मौका हाथ से निकल जाएगा। इसीलिए वो डेमोग्राफी चेंज करने एक और सूबा बनाने के आरोप लगा रहा है। वैसे अगर भारत सरकार ऐसा कर भी रही तो इसमें पाकिस्तान को टांग फंसाने की क्या जरूरत है। पहले अपना सिंधुस्थान, पखतूनिस्तान और बलोचिस्तान तो बचाए।