देश में कोरोना केस लगातर तेजी से बढ़ रहे हैं। हर दिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इतनी तादात में आ रहे केस के कारण देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है। हर तरफ ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड, वेंटिलेटर के लिए मारी-मारी मची हुई है। हालांकि सरकार का कहना है कि किसी चीज की किल्लत नहीं है और उत्पादन बढ़ाने का आदेश दिया गया है, लेकिन स्थिति खराब जान पड़ रही है।
उधर रेमडेसिविर की कालाबाजारी होने की रिपोर्ट है। कहा जा रहा है कि लोग यह इंजेक्शन खरीद कर घरों में रख रहे हैं। लिहाजा जिन्हें वाकई इसकी दरकार है, वे इससे वंचित से हो रहे हैं। रेमडेसिविर के बारे में अलग-अलग राय हैं, खासकर डॉक्टर्स के जो अग्रिम मोर्चे पर कोरोना से लोहा ले रहे हैं। सवाल है कि क्या वाकई रेमडेसिविर वह दवा है जिसकी जमाखोरी होनी चाहिए इस उम्मीद में कि यही दवा अंत समय में जान बचा सकती है? इस बारे में मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल के सीनियर डॉक्टर सीएस प्रमेश की स्पष्ट राय है।
डॉ. प्रमेश बताते हैं कि अगर किसी मरीज का ऑक्सीजन लेवल सामान्य हो, बुखार के अलावा कोई अन्य लक्षण न हों तो महज पैरासिटामोल से काम चल सकता है। इसके लिए किसी बड़ी दवाई की जरूरत नहीं। डॉ। प्रमेश के मुताबिक, कहीं-कहीं ये भी पढ़ने को मिल रहा है कि कोरोना मरीज को बुडसोनाइड से फायदा होता है। अगर यह दवा मरीज सूंघे (inhale) करे तो उसकी रिकवरी तेज होती है। लेकिन इससे मृत्यु दर घटने वाली कोई बात नहीं है। वैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि इस तरह की दवाएं मृत्यु दर में कोई मदद नहीं करतीं और फेवीपिरार जैसी इवरमेक्टिन के पीछे भागने से कोई लाभ नहीं होने वाला। इन दवाओं के लिए होड़ मचाना अपना समय बर्बाद करने के सिवा और कुछ नहीं है।
एक सवाल ये भी है कि जब ये सारी दवाएं बेजान और बेकार साबित होती दिख रही हैं तो किस दवा पर भरोसा करें। कौन सी दवा मरीज की जान बचा सकती है या रिकवरी में मदद कर सकती है? डॉ। प्रमेश कहते हैं कि इस कैटगरी में बेहद कम दवाएं हैं। बस इसका खयाल रखना है कि जब ऑक्सीजन का लेवल गिरता जाए तो ऑक्सीजन ही जान बचा सकती है। कुछ हद तक मध्यम गंभीरता से लेकर खतरनाक स्तर की बीमारी में स्टेरॉयड भी काम करते हैं।
रेमडेसिविर ही जान बचाती है?
फिर रेमडेसिविर, टोसिलीझुमैब और प्लाज्मा से कितनी मदद मिलती है? इस बारे में डॉ। प्रमेश का कहना है कि रेमडेसिविर बहुत हद तक मदद नहीं करती और यह सभी मरीजों पर काम भी नहीं करती। मरीजों का कुछ ही सेक्शन है जिस पर यह दवाई काम करती है। जैसे कि किसी के ऑक्सीजन का स्तर काफी गिर गया है और वह सांस लेने की स्थिति में नहीं है। वेंटिलेटर पर गए आदमी में भी इसका असर नहीं होता। यह दवा शुरू में मरीज को रिकवर करने में मदद करती है। लोगों के मृत्यु दर को तो बिल्कुल नहीं घटाती। इस दवा के साथ यही बात है।