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पुलवामा का 'वानी' दोनों पैरों से मजबूर पर बना कई परिवारों का सहारा

पुलवामा का 'वानी' दोनों पैरों से मजबूर पर बना कई परिवारों का सहारा

हौसले बुलंद हो तो कदम अपने आप मजबूत पड़ने लगते हैं। बस इच्छाशक्ति पैदा करने की जरूरत है। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा का एक नौजवान उन लोगों के लिए प्रेरणा बन रहा है जो दिव्यांगता को अपनी कमजोरी मान लेते हैं। हिम्मत हार कर व्हीलचेयर पर अपनी जिंदगी काटने लगते हैं। आज की कहानी उस शख्स की है। जो अपनी दिव्यांगता को अपने हुनर के बीच नहीं आने दिया।

बात 34 साल के अर्शीद अहमद वानी की है जो कारपेंटिंग यूनिट चलाता है। कभी वह दोनों पैर से मजबूत थे और व्हीलचेयर पर पड़े रहते थे। लेकिन आज वो खुद कारपेंटर का काम करते हैं और अन्य <a href="https://hindi.indianarrative.com/india/with-the-help-of-jammu-and-kashmir-government-fish-farming-increased-in-the-valley-now-giving-employment-to-others-21724.html" target="_blank" rel="noopener noreferrer">छह लोगों को रोजगार मुहैया</a> करा रहे हैं। आज उनके घर का गुजारा उनकी कमाई से चलती है। एक हादसे में उनके पैर पर गंभीर चोटें आई। यह घटना साल 2016 की है। उस वक्त डॉक्टरों ने बताया कि वह पैर से लकवाग्रस्त हो चुके हैं और अब वह कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते हैं। वानी का कहना है कि उन्हें इस बात से काफी धक्का लगा। इससे बेहद दुखी हुए।
<h3>कभी हाथ नहीं फैलाएंगे</h3>
जब वह काम की तलाश करने लगे तो दिव्यांग होने के कारण उन्हें कहीं काम नहीं मिल रहा था। तब  उनको अपना गुजारा चलाना मुश्किल होने लगा। इस दौरान वानी ने ठान लिया कि वह कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे। भीख नहीं मांगेंगे। एक बार उन्होंने जिला प्रशासन को अप्रोच किया और अपना कारोबार शुरु करने की बात कही। प्रशासन उनको मदद करने के लिए तैयार हो गया और वह कारपेंटर का काम शुरू किए। वह लकड़ी के गेट औक  खिडक़ी बना रहे हैं। शुरू में उनके पड़ोसी और रिश्तेदारों ने बहुत मदद की। काम धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ लिया। उन्होंने बताया कि आज उनके यहां छह अन्य लोग काम कर रहे हैं।

अर्शीद अहमद वानी <a href="https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE" target="_blank" rel="noopener noreferrer">पुलवामा</a> के लिटर गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि साल 2016 की घटना के बाद उनका पूरा जीवन ही बदल गया था। वह कारपेंटर का काम जानते थे लेकिन दोनों पैर किसी काम के नहीं रहने के कारण अपने जीवन से निराश हो चुके थे। उन्हें कई बार ख्याल आया कि क्यों न अपना कारोबार शुरू किया जाए। इस सोच को वानी ने कुछ लोगों के साथ शेयर किया। जब लोगों ने उसका साथ दिया तो उसने अपना लकड़ी का कारोबार शुरु कर दिया।
<h3>जिला प्रशासन बना मददगार</h3>
वानी का कहना है कि जब मैंने काम करके गुजारा करने की इच्छा लोगों के सामने रखी तो कई लोगों ने जिला प्रशासन से मदद मांगने की राय प्रकट की। इसके बाद वहां से आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद जगी। मैंने एक पत्र जिला प्रशासन को लिखा। इसके कुछ दिनों बाद ही डिप्टी कमीशनर की ओर से मेरी मदद की गई। मुझे लकड़ी का बिजनेस खोलने के लिए कर्ज मिल गया।

जिला समाज कल्याण (DIC) अधिकारी मुश्ताक अहमद ने बताया कि जिला प्रशासन उन्हें मासिक पेंशन भी प्रदान कर रहा है। वानी को 1000 रुपए मासिक पेंशन दिया जाता है। इसके अलावा वो यहां आए  थे और हमने उनको व्हीलचेयर भी दिया था। उन्होंने एक यूनिट शुरू किया है और दूसरे लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं।.