भारत में आज से रमजान महीने की शुरुआत हो चुकी है। रमजान के इस पवित्र महीने में मुसलमान लोग रोजा रखते है। इस दौरान सूरज निकलने से लेकर सूर्यास्त तक कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। इस्लामिक स्कॉलर डॉ जिशान मिस्बाही के मुताबिक, रोजा रखने में शिया और सुन्नी मुस्लिम के तौर तरीके में फर्क होता है। सहरी और इफ्तार के लिए भी दोनों का अलग ही समय होता है। चलिए पहले जान लेते सुन्नी मुसलमान और शिया मुस्लिम कौन होते है।
सुन्नी मुसलमान- सुन्नी शब्द 'अहल अल-सुन्ना' से बना है, जिसका अर्थ परंपरा को मानने वाले लोग…. यहां परंपरा का मतलब ऐसी रिवाजों से है जो पैगंबर मोहम्मद साहब और उनके करीबियों के व्यवहार या सोच पर आधारित हो। सुन्नी उन सभी पैगंबरों को मानते हैं जिनका जिक्र कुरान में किया गया है, लेकिन साथ ही अंतिम पैगंबर मोहम्मद साहब थे। इनके बाद हुए सभी मुस्लिम खलीफाओं को दुनिया की अहम शख्सियत के रूप में देखते है।
शिया मुस्लिम- 'शियत अली' यानी अली की पार्टी… शियाओं का दावा है कि मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार हजरत अली और उनके वंशजों का ही है। अली पैगंबर मोहम्मद के दामाद थे और चचेरे भाई भी थे। इस्लाम में खिलाफत को लेकर ही हजरत अली और उनके दोनों बेटे हसन-हुसैन शहीद हुए। हुसैन की मौत करबला के जंग में हुई, जबकि माना जाता है कि हसन को जहर दिया गया था। इन घटनाओं के कारण शियाओं में शहादत और मातम मनाने को महत्व दिया जाता है।
मुसलमान मौटे तौर पर शिया और सुन्नी दो समुदायों में बंटे हैं। ये दोनों ही मुस्लिम समुदाय इस्लाम के बुनियादी पांचों उसूलों के साथ-साथ कुरआन और अल्लाह के पैगंबर मुहम्मद तक एक राय रखते हैं। शिया और सुन्नी पैगंबर मोहम्मद के निधन के तुरंत बाद ही इस बात पर विवाद से विभाजन पैदा हो गया कि मुसलमानों का नेतृत्व कौन करेगा. इसीलिए दोनों में अलग राय पैगंबर के बाद उनके वारिस पर है, जिस वजह से दोनों ही संप्रदाय में कई मुद्दों पर वैचारिक मतभेद हैं। दोनों ही समुदाय के नमाज के तौर तरीकों से लेकर अजान तक में फर्क है।
रमजान के महीने में एक विशेष नमाज पढ़ी जाती है, जिसे तराबी नमाज कहते हैं। इस तराबी नमाज को सुन्नी समुदाय के लोग रात में ईशा की नमाज के बाद पढ़ते हैं जबकि शिया समुदाय के लोग इस नमाज को नहीं पढ़ते है। हालांकि, सुन्नी समुदाय के बीच तराबी की नमाज के रकात को लेकर मतभेद है। हनफी मसलक के लोग तराबी की नमाज 20 रकात पढ़ते हैं तो अहले हदीस के मानने वाले लोग तराबी की महज आठ रकात नमाज पढ़ते हैं। इसके अलावा, सुन्नी मुस्लिम अपना रोजा सूरज छिपने पर खोलते हैं यानी उस वक्त सूरज बिल्कुल दिखना नहीं चाहिए। वहीं, शिया मुस्लिम आसमान में पूरी तरह अंधेरा होने तक इंतजार करते हैं और उसी के बाद रोजा खोलते है। सुन्नी मुस्लिम रोजा खोलकर मगरिब की नमाज पढ़ता है जबकि शिया नमाज पढ़कर रोजा खोलता है। ऐसे ही तड़के में सहरी के दौरान सुन्नी मुस्लिम से 10 मिनट पहले ही शिया मुस्लिम के खाने का वक्त खत्म हो जाता है।