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CJI बोबडे के रिटायरमेंट के दिन बड़ा धमाका ‘कोई मुसलमान रखता अयोध्या राम मंदिर की नींव, सुपर स्टार से शाहरुख खान से हो चुकी थी बात’

शाहरुख खान बनने जा रहे थे आयोध्या राम मंदिर के सुपर स्टार!

आयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण की तैयारी है। लेकिन अब पूर्व चीफ जस्टीस ऑफ इंडिया एसए बोबडे के कार्यकाल खत्म होने के बाद बड़ा खुलासा हुआ है। देश के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक अयोध्या मसले पर शाहरुख खान को मध्यस्थता करने का न्योता मिला था। ये न्योता किसी और ने नहीं बल्कि खुद सुप्रीम कोर्ट  के चीफ जस्टिस की तरफ से दिया गया था। इस बात का खुलासा सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने किया है। चीफ जस्टिस के विदाई समारोह के मौके पर इस बात का खुलासा हुआ। वह चाहते थे कि शाहरुख खान अयोध्या भूमि विवाद के समाधान की मध्यस्थता प्रक्रिया का हिस्सा हों।

न्यायमूर्ति बोबडे के प्रयास की सराहना करते हुए सिंह ने कहा कि अभिनेता भी इसके लिए सहमत थे लेकिन यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी।उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति बोबडे जब अयोध्या मामले की सुनवाई के शुरुआती चरण में थे तब उनका यह दृढ़ मत था कि समस्या का समाधान मध्यस्थता के जरिए हो सकता है। सिंह ने कहा, 'जहां तक अयोध्या विवाद की बात है, मैं आपको अपने और न्यायमूर्ति बोबडे का एक राज बताता हूं। जब वह सुनवाई के शुरुआती चरण में थे, उन्होंने मुझसे पूछा कि था कि क्या शाहरुख खान समिति का हिस्सा हो सकते हैं। उन्होंने मुझसे पूछा क्योंकि वह जानते थे कि मैं खान के परिवार को जानता हूं। मैंने खान से इस मामले पर चर्चा की और वह इसके लिये सहमत थे।'

विकास सिंह के मुताबिक जस्टिस बोबडे के कहने पर उन्होंने शाहरुख खान से इस बारे में बात भी की। शाहरुख को जब ये पता चला तो वो खुशी से इस कमेटी में मध्यस्थ के तौर शामिल होने के लिए राजी भी हो गए थे। लेकिन बाद में बात नहीं बन सकी। मध्यस्थ पैनल सुप्रीम कोर्ट की पहल पर बनाया गया था इसमें जस्टिस कलीफुल्ला, संत श्री श्री रविशंकर और जाने माने वकील श्रीराम पंचू को शामिल किया गया था। जब ये पैनल किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका तो उस वक्त के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनने और फैसला देने की बात मान ली।

सिंह ने कहा, 'खान ने यहां तक कहा कि मंदिर की नींव मुसलमानों द्वारा रखी जाए, और मस्जिद की नींव हिंदुओं द्वारा। लेकिन मध्यस्थता प्रक्रिया विफल हो गई और इसलिये यह योजना छोड़ दी गई। लेकिन सांप्रदायिक तनाव को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की उनकी इच्छा उल्लेखनीय थी।'