अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में भर्ती पर्यावरणविद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना से आज निधन हो गया। उन्हें बीती आठ मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। अचानक उनकी हालत बिगड़ गई और 95 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणामें आखिरी सांस ली। उनका अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर आज पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। उनके निधन की खबर सुनकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने गहरा शोक व्यक्त किया और इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया।
सुंदरलाल बहुगुणा प्रख्यात गढ़वाली पर्यावरणवादी और चिपको आंदोलन के नेता थे। सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9जनवरी 1927को उत्तराखंड के एक छोटे से गांव सिलयारा में हुआ था। 13साल की उम्र में उन्होंने अपना सामाजिक और राजनीतिक जीवन शुरू कर दिया था। उन्होंने महात्मा गांधी को अपना गुरु माना और समाज सेवा में जुट गए। इस दौरान वो अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देते। सुंदरलाल ने उत्तराखंड, दिल्ली और लाहौर में पूरी करी और कला स्नातक की डिग्री हासिल करी ली। शादी होने के बाद सुंदरलाल ने राजनीति से सन्साय ले लिया और पहाड़ों में आम जीवन व्यतीत करने लगे।
चिपको आंदोलन की बात जब भी की जाती है, तो सुंदर लाल बहुगुणा का नाम जरुर लिया जाता है। 1962के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत सरकार ने भारत-तिब्बत सीमा पर अपनी पैठ मजबूत करने की तैयारी की। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक बॉर्डर के इलाकों में सड़कें बनाने का काम शुरू हुआ। उस वक्त उत्तर प्रदेश, जो अब उत्तराखंड है… के इलाके चमोली जिले में भी सड़क निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई। सड़क के लिए जमीन चाहिए थी, और पहाड़ के जंगल वाले इलाकों में बिना पेड़ों को काटे जमीन कैसे मिलती, इसलिए बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई शुरू हुई।
1972आते-आते ये कटाई काफी तेज हो गई। पेड़ों को काटने का स्थानीय लोगों ने विरोध किया। पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए सुंदर लाल बहुगुणा ने लोगों को जादरुक किया और पेड़ से चिपककर उन्हें बचाने का सुझाव दिया। इस आंदोलन में न सिर्फ पुरुष बल्कि महिलाओं ने भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इलाके की सभी महिलाएं जंगल कटाई के खिलाफ उतर आईं। जगह-जगह महिला मंगल दल बन गए। सुंदर लाल बहुगुणा के बात सुन आसपास के गांव से भी महिला मंगल दल बनने लगे।
महिला मंगल दल की महिलाएं घर-घर घूमकर लोगों को पेड़ों का महत्व समझातीं और पर्यावरण के लिए जागरूक करतीं। 1973की सरकार का प्लान था कि रैणी गांव के ढाई हजार पेड़ काटे जाएंगे। इसके विरोध में पूरा गांव खड़ा हो गया। 23मार्च 1973को पेड़ों की कटाई के विरोध में रैली निकाली गई. लेकिन इस सबका सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा। पेड़ काटने का ठेका भी दे दिया गया। ठेकेदार पेड़ काटने पहुंच गए। तभी सुंदरलाल बहुगुणा प्रख्यात के नेतृत्व में लोग पेड़ों से चिपक गए। उनका कहना था- 'पहले हमें काटो, फिर पेड़ को काटना'..
लोगों की मदद से सुंदरलाल बहुगुणा ने सरकार को इतना मजबूर कर दिया कि उन्हें पेड़ों को काटने का फरमान वापस लेना पड़ा। पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाने का ये अभियान 'चिपको आंदोलन' कहलाया। इस आंदोलन में जान भरने के लिए एक नारे का इस्तेमाल किया गया।
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सुंदर लाल बहुगुणा भी खुद पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाने के इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व किया था। ये आंदोलन देश-दुनिया में मशहूर हो गया। 1987में इस आंदोलन को सम्यक जीविका पुरस्कार का सम्मान दिया गया था। आपको दें कि चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को भी अपना समर्थन दिया था।